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म. २०.
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
(६६१)
वित्रमें शोधनादि । फोडों के निकलने पर बिना नमक डाले संशोधनं विशेषात्प्रयोजयेत्पूर्वमेव देहस्य ।। तक्रके माय भोजन करना चाहिये। बि संसनमग्यं मलयरस इष्यते सगुडः
उक्तरोग में गोमूत्रपान । तं पीत्वाऽभ्यक्ततर्नुयथाबलं सूर्यपादसंतापम् सेवेत विरिक्ततनुस्यह पिपासुःपिवेत्पयाम्
गव्य मूत्रं चित्रकन्योषयुक्तं
सर्पिकुंभे स्थापितं क्षौद्रामिश्रम् । - अर्थ-श्वित्ररोग में प्रथमही देहके संशो
पक्षाव श्वित्रिभिः पेयमेतत् धन के निमित्त यत्नकरै । श्वित्रमें वाकुची के
कार्य चास्मै कुष्ठदृष्टं विधानम् ॥ ७॥ क्वाथ के साथ थूहर का दूध मिलाकर वि.
अर्थ-गौ का मूत्र, चीता, त्रिकुटा का रेचन दैना अच्छा है । इस काथको पीकर चूर्ण मधु मिलाकर पन्द्रह दिनतक घी से देहमें तेल लगाकर रोगी शक्ति के अनुसार | चिकनी हांडीमें भरकर रखा रहनेदे, पं. धूपमें बैठारहे । विरेचन के कारण तृषा न्द्रह दिन पीछे श्चित्ररोगी को पान करावे उत्पन्न होनेपर तीन दिन तक पेयापान करे। तथा कुष्ठचिकित्सितोक्त अन्य उपचारों का
फोठोंका कांटोंसे भेदन । प्रयोग भी करे । विगे ये स्फोटा जायते कंटकेन तान्। । अन्य प्रयोग ।
मिद्यात्।
मार्कवमथवा स्वादेभ्रष्टं तैलेन लोहपात्रस्थम् स्फोटेषु निमुतेषु प्रातः प्रातापियेत् त्रिदिनम् :
| बीजक शृतं च दुग्धंतदनुपियेच्छ्वित्रनाशाय मलयमसनं प्रियंगू शतपुष्पां चांभसा
समुत्काथ्य।
____ अर्थ-लोहेकी कढाई में भांगरे को तेल पालाशं या क्षारं यथावलं फाणितोपेतम्" से भूनकर सेवन करे, बिजौरे के रसके अर्थ-चित्र के ऊपर जो फोडे उत्पन्न
साथ पकाया हुआ दूध पीव । इससे श्वित्र होजाय, उनको कांटों से छेद देना चाहिये,
नष्ट होजाताहै । फोडों से स्राव होजाने पर तीन दिन तक उक्त रोग पर लेप। प्रात:काल चंदन, असन, मालकांगनी, और पूतीकार्कव्याधिघातस्नुहीनां सौंफ इनके काधमें शहत मिलाकर अथवा मूत्रे पिष्टाः पल्लवा जातिजाश्च । पलासके क्षारमें फाणित मिलाकर पीना
नंत्यालेपाच्छ्यिगदुर्नामददू. चाहिये।
पामाकाष्ठान्दुष्टनाडीव्रणांश्च ॥९॥ उक्तरोग पर कल्क ।
अर्थ- पूतीकरंज, भाक, अमलतास, फवक्षवृक्षवल्कलनिहेणेदुराजिकाकल्क | थूहर और चमेली के पत्ते इनको गोमूत्र में पीत्वोष्णस्थितस्य जाते स्फोटेतकेण भोजनं पीसकर लगाने से श्वित्रकुष्ठ नष्ट होजाताहै। निलवणम्॥६॥
अन्य योग। अर्थ-काकाडुम्बर और बहेडे के वृक्ष
द्वैपं दग्धं चर्म मातंग वा की छालका काथ करके उसमें बाकुची का वित्रे लेपस्तैलयुक्तोवरिष्ठः। करूक मिलाकर पीवै । पीकर धूपमें बैठनेसे अर्थ-व्याघ्र अथवा हाथी के चमडे की
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