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(६६०)
अष्टांगहृदय ।
भ.२..
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अर्थ-वातादि दोषोंके निकलने पर तथा कुण्ठ में वृतादि। . रक्तस्राव के पीछे तथा बाह्य और आभ्यंत- वृतदमयमसेवात्यागशीलाभियोगो रिक शमन क्रियाओं के करने पर और उ.
द्विजसुरगुरुपूजा सर्वसत्वेषु मैत्री।
शिवशिवसुतताराभास्कराराधनानि चित काल में स्नेहन प्रयोग करने से साध्य
प्रकटितमलपाप कुष्ठमुन्मूलयंति ,, | कुष्ठ शांत होजाता है।
अर्थ-कुष्ठरोग में व्रत ( नियमपूर्वक बहुदोष कुष्ठको संशोधनत्व ।।
| रहना ), दम ( इन्द्रियों का निग्रह ), यम बहुदोषः संशोध्यः कुष्ठी बहुशोनुरक्षता |
| ( अहिंसा ), त्यागशीलिता, ब्राह्मण, देवता
प्राणान् । दोषे ह्यतिमात्रहते वायुहन्यादवलमाशु ॥ और गुरूओं की पूजा, संपूर्ण जीवों में मैत्री___ अर्थ-बहुत दोपों से युक्त कुष्ठरोगी का भाव, शिव, गणेश, तारा और सूर्यकी आबार बार संशोधन करना चाहिये । परन्तु | राधना, इन सब कर्मों के करने से दोष और अधिक संशोधन से रोगी की प्राणहानि न पापोंसे उत्पन्न हुए कुष्ठ जडसे जाते रहते हैं। होने पावै । क्योंकि दोषोंके अत्यन्त निक- इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषालने पर वायु रोगीको शीघ्र मारडालती है। टीकान्वितायां चिकित्सितस्थाने
कुष्ठरोगी का वमनादि काल ।। कुष्ठचिकित्सितं नामैकोनविंपक्षात्पक्षाच्छदनान्यभ्युपेया
शोऽध्यायः ॥ १९ ॥ मासान्मासाच्छोधनान्यप्य धस्तात् । शुद्धिमूर्ध्नि स्यात्रिरात्रात्रिरात्रात् षष्ठे षष्ठे मास्यसृमोक्षणानि ॥९६॥
विशोऽध्यायः। अर्थ-कुष्ठरोगी को प्रतिपक्ष में वमन, प्रतिमास में विरेचन, तीन तीन दिन के अंतर से शिविरेचन और छः छः महिने अथाऽतःश्चित्रकृमिचिकित्सित व्याख्यास्याम: पीछे रक्तमोक्षण करना चाहिये ।
अर्थ-अव हम यहांसे श्वित्रकृमिचिकित्सि___कुष्ठरोगी का दोषहरण ।
तनामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। ' यो दुर्वातो दुर्विरिक्तोथवा स्यात
चित्रको भयानकत्व । . कुष्ठी दोषेरुद्धताप्यतेऽसौ। कुष्ठादपि बीभत्सं यच्छीघ्रतरं च . निःसंदेहं यात्यसाध्यत्यमेवं
यात्यसाध्यत्वम् । तस्मात्कृत्वानिहरेदस्य दोपान् श्वित्रमतस्तच्छत्यैि यतेत दीप्ते यथा भवने
अर्थ-जिस कुष्ठरोगी को सम्यक् वमन अर्थ-वित्ररोग कुष्ठसे भी निंदित होता वा विरेचन न हुआ हो, उसका कुष्ठ निः- | है और शीघ्रही भयानक होजाताहै, इसलिये संदेह असाध्य होजाता है । इसलिये सम्यक् जैसे जलते हुए घरकी रक्षा का शीघ्र यत्न वमन विरेचन देकर दोषको बिलकुल निः- किया जाताहै, वैसेही श्वित्र की शांतिका शेष करदेना चाहिये।
! यत्नभी शीघ्रतापूर्वक करना चाहिये ।
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