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(६५२)
अष्टांगहृदय ।
अ.१९
अर्थ-पर्वल की जड़ त्रिफला और इन्द्रा.
अन्य प्रयोग। पण प्रत्येक सोलह धानक, प्रायमाणा और | भूनियनिवत्रिफलापद्मकातिविषाकणाः । कटु रोहिणी प्रत्येक छः धानक, सोंठ चार मूर्बा पटोली द्विनिशा पाटातिक्तंद्रयारुणी॥ धानक, ये सब मिलाकर एक पल हुए,
सकलिंगवचास्तुल्या द्विगुणाश्च यथोत्तरम् इनको कूटकर जल में पकाये । इस काढे
लिह्याइती त्रिवृद्धामोश्चूर्णिता मधुसर्पिषा
कुष्ठमेहप्रसुप्तीनां परमं स्योत्तदोषधम् । को दोषों की शुद्धि के निमित्त पावै । इस ___ अर्थ-चिरायता, नीमकी छाल, त्रिफला औषध के पच जाने पर जांगल पशुपक्षियों पदमाख, अतीस, पीपल, मूर्वा, पर्वल, का मांसरस, मिलाकर पुराने शाली चावलों
हलदी, दारू हलदी, पाठा, कुटकी, इन्द्रा का
भात खानेको दे । इस ओषध का छ: । यण, इन्द्रजौ, और वच प्रत्येक समानभाग दिन तक सेवन करने से कुष्ठरोग, किलास तथा दंती, निसोथ और ब्राह्मी उत्तरोत्तर दूनी प्रहणीदोष, कष्टसाध्य अर्श, हलीमक, हृद- लेवै । इन सब का चूर्ण बनाकर घी और शूल, वस्ति शूल और विषमज्वर जाते शहद के संग चाटै, यह कुष्ठ, प्रमेह और रहते हैं!
प्रसुप्ति ( शून्यता ) इन रोगों की परम जितेन्द्रियों की कोढ का उपाय ।। औषध है। बिडंगसारामलकाभयानां
कुष्ठ पर त्रिफलादि लेह । पलत्रयं त्रीणि पलानि कुंभात् । | बराविडंगकृष्णा वा लिह्यातैलाज्यमाक्षिक गुणस्य च द्वादशमासमेष
___ अर्थ-त्रिफला, बायबिडंग, पीपल, इन जितात्मनां हत्युपयुज्यमानः ॥ ३१ ॥
के चूर्ण का तेल, घी और शहत मिलाकर कुष्टं श्वित्रं श्वासकासोदरार्थीमेहलीग्रंथ्यरुग्जंतुल्मान् ।
सेवन करने से कुष्ठरोग जाता रहता है। सिद्धं योग प्राह यक्षो मुमुक्षो
त्वचारोग पर काढा। मिक्षोः प्राणान्माणिभद्रा किलेमम् ॥ काकोदंबरिकायेल्लनिवाब्दव्योषफल्कवान् ।
अर्थ-बायबिडंग, आमला और हरड | इति वृक्षकनियूहः पानात्सर्यास्त्वगामयान् प्रत्येक एक पल, निसोथ तीन पल और अर्थ-काकोवर, बायबिडंग, नीमकी गुड बारह पल इनकी गोलियां बनाकर छाल, मोथा और त्रिकुटा इनके कल्क को यथायोग्य मात्रानुसार सेवन करने से एक
कुडाके काढे के साथ पीने से त्वचा के रोग महीने में कोढ, श्वित्रगेग, श्वास, खांसी,
| जाते रहते हैं। उदररेग, अर्श, प्रमेह, डीहा, ग्रंथि, कृमि
अन्य प्रयोग। रोग, और गुल्म जाते रहते हैं । रोगी को
| फुटजाग्निनिवसतरुखदिरास
. नसप्तपर्णनियूहे। पथ्य से रहना उचित हैं । यह सिद्ध योग | सिद्धा मधुघृतयुक्ताः कुष्ठनीमक्षयेदभयाः ॥ माणिभद्र नामक किसी यक्ष ने मृतःप्राय अर्थ--कुडा की छाल, चीता, नीमकी किसी भिक्षुक को बताया था । । । छाल, अमलतास, खैरकी लकडी, असन,
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