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(३५६)
अष्टांगहृदय ।
अन्य क्वाथ।
कुण्ठ में उद्धर्तन । करवीर निषकुटजाच्छम्याकाचित्रकाच । मिष हरिद्रे सुरसं पटोले
मुलानाम् । कुष्टाश्वगंधे सुरदारुशिनः। भूने दीलेपी काथो लेपेन कुष्ठन्नः ॥ ११ ॥ ससर्षपं तुंबरुधान्यवन्य __ अर्थ-कनेर की जड, नीमकी जड, चंडावचूर्णानि समानि कुर्यात् ॥६५॥ कुडाकी जड, अमलतास की जड, चीतेकी तैस्तऋपिष्टैः प्रथमं शरीरं जड इनको गोमूत्र में पकावै, जब यह इतना
तैलाक्तमुर्तयितुं यतेत ।
तेनास्यकंडूपिटिकाः सकोठाः गाढा होजाय कि कलछी से लगने लगे तब
| कुष्ठानि शोफाश्च शमं व्रजति । ६६ । इसका लेप करे | यह लेप कुष्ठनाशक
___ अर्थ--नीमकी छाल, दोनों हलदी, तुहोताहै।
लसी,पर्वल,कूठ,असगंध, देवदारू,सहजना, अन्य लेप।
सफेद सरसों, तुंबरु, धनियां, चंडा इनको तकरवीरमूलं कुटजकरजात्फलं स्वचो. समानभाग लेकर तक में पीस्ले । प्रथम
दायाः। सुमनःप्रवासयुक्तो लेपः कुष्ठापहः सिद्धः ॥
शरीर पर तेल लगाकर उक्त उवटने से . अर्थ-सफेद कनेर की जड, इन्द्रनो, .
मर्दन करने पर कंड़, पिटिका, पित्ती, कुष्ठ फंजा, दारुहल्दी की छाल, चमेली के पत्ते, | और सूजन जाते रहते हैं । उबटने के इन सन द्रव्योंका लेप कुष्ठनाशक होताहै। ।
रोगी को गरम जल से स्नान करावे। अन्य लेप ।
दद्रुनाशक चूर्ण। शैरीषीलपुष्पं कार्पास्याराजवृक्षपत्राणि ।
मुस्तामृतासंघकटंकटेरीपिष्टा च काकमाची चतुर्विधः कुष्ठहा लेपः।
कासीसकंपिल्लककुष्टराधाः । म्योपसर्षपनिशागृहधूमै
गंधोपलः सर्जरसो विडंग
मनःशिलालेकरवीरकत्वक पिशूकपटुचित्रककुष्टैः।
तैलाक्तगात्रस्य कतानि चूर्ण. कॉलमात्रगुटिकाविर्षाशाः
म्येतानि दद्यादवचूर्णनार्थम । श्विभकुष्ठहरणो वरलेपः॥ ६४ ॥
ददुः सकंडूःकिटिभानि पामा . अर्थ-सिरस की छाल, कपास के फूल विचर्चिका चेति तथा न सति । १८ । अमलतास के पत्ते, और मकोय इनका लेप
अर्थ-मोथा, गिलोय, फिटकरी, कटेरी, चार प्रकार के कुष्ठों को नष्ट करदेताहै। कसीस, कबीला, कूठ, लोध. गंधक, एला, त्रिकुटा, सफेद सरसों, हलदी, गृहधूम,
बायबिडंग, मनसिल, हरताल, और कनेर भवाखार, पांशुनमक, चीता और कूठ, प्रत्ये की छाल, इन सब द्रव्यों को समान भाग क समान भाग बिष आधा भाग इनको लेकर चूर्ग बनाले । प्रथम पीडित शरीर पीसकर बेर के बराबर गोलियां बनावै । पर तेल लगाकर इस चूर्ण को बुरक दे । इनका लेप करनेसे चित्रकुष्ठ जाता रहताहै। इससे खुजलीवाला दाद, किटिम, पामा,
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