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विबंध युक्त हो तो संचल नमक, त्रिकुटा, और शतके साथ तक पान करे अथवा गुड और हरड खाकर तक्र पीवै अथवा गुड और सोंठ पर तक्रका अनुपान करे । अन्य प्रयोग |
आर्द्रकं वा समगुडं प्रकुंचाधविवर्धितम् । परं पंचपलं मासं यूषक्षररसाशनः ॥ ६ ॥ गुल्मोदराः श्वयथुप्रमेहान् श्वासप्रतिश्यालसकाविपाकान् । सकामलाशोफमनोविकारान् ari hi चैव जयेत्प्रयोगः ॥ ७ ॥ ॥ अर्थ - अदरख और गुड दोनों समान भाग लेकर आधे पल के समान प्रथम दिन सेवन करे फिर प्रतिदिन आधा पल बढाकर पांच पल तक बढादे फिर आधा २ पल घटाकर आधे पल तक उतर आवै । इस तरह एक महिने तक इस प्रयोग का सेवन करता रहै, यूत्र, क्षीर और मांसरस का पथ्य सेवन करे । इससे गुल्मरोग, उदर रोग, अर्श, सूजन, प्रमेह, श्वास, प्रतिश्याय, अलसक, अविपाक, कामला, सूजन, मनोविकार, खांसी और कफ जाते रहते हैं । शोफपर घृत ।
घृतमा कनागरस्य कल्कस्वरसाभ्यां पयसा च साधयित्वा श्वयथुक्षवथूद राग्निसादैरभिभूतोऽपि पिवन् भवत्यरोगः ॥ ८ अर्थ - अदरख के कल्क और उसी के रसके साथ पकाया हुआ घी सूजन, हिचकी, उदररोग, अग्निमांद्य, इन रोगों को दूर कर देता हैं ।
अन्य प्रयोग |
निरामो बद्धशमलः पिवेच्छ्वयथुपाडितः
अष्टfiger |
अ० १७
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त्रिकटुत्रिवृता इंतीचित्रकैः साधितं पयः ॥ मूत्र गोर्वा महिष्या वा सक्षीरं क्षीरभोजनः सप्ताहं मासमथवा स्यादुष्टक्षीरवर्तनः ॥
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अर्थ - आमरहित और बद्धमलवाले शोष रोगी को त्रिकुटा, निसोथ, दंती, और चीता इन से सिद्ध किया हुआ दूध पीने को दे । अथवा गोमूत्र वा भेंस का मूत्र पीने को दे । दूधके साथ अन्न साथ पथ्य देवै । अथवा सात दिन तक वा एक महिने तक ऊंटनी का केवल दूध देना चाहिये ।
वा केवल दूधके
अन्य प्रयोग |
यवानकं यवक्षारं यवानीं पंचकोलकम् । मरिचं दाडिमं पाठां धान कामम्लवेतसम् वालविल्वं च कर्षाशं साधयेत्सलिलाढके । तेन पक्को घृतप्रस्थः शोफार्शोगुल्ममेहहा ॥
श्चर्थ - अजवायन, जवाखार, अजमोद, पंचमूल, कालीमिरच, अनार, पाठा, धनियां, अम्लवेत, कच्ची बेलागरी प्रत्येक एक कर्ष, घी एक प्रस्थ और जल एक आढक इनको पाकोक्त रीति से पकाकर सेवन करे तो शोफ, अर्श, गुल्म और प्रमेह नष्ट हो जाते हैं ।
अन्य प्रयोग |
दनश्चित्रकगर्भाद्वा घृतं तत्तकसंयुतम् । पक्कं सचित्रकं तद्वदुः युंज्याच्च कालवित् ॥ धान्वंतरं महातिक्तं कल्याणमभया घृतम् ।
अर्थ-चीते के चूर्ण से मिले हुए दूध को जमाकर दही करले । फिर इस दहीको मधकर जो तत्र वनाया जाय, इस तक के साथ पका हुआ भी पूर्वोक्त गुणकारक होता है दोपानुसार कुशलवैद्य धान्वन्तर घृत,
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