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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ( ६४० ] विबंध युक्त हो तो संचल नमक, त्रिकुटा, और शतके साथ तक पान करे अथवा गुड और हरड खाकर तक्र पीवै अथवा गुड और सोंठ पर तक्रका अनुपान करे । अन्य प्रयोग | आर्द्रकं वा समगुडं प्रकुंचाधविवर्धितम् । परं पंचपलं मासं यूषक्षररसाशनः ॥ ६ ॥ गुल्मोदराः श्वयथुप्रमेहान् श्वासप्रतिश्यालसकाविपाकान् । सकामलाशोफमनोविकारान् ari hi चैव जयेत्प्रयोगः ॥ ७ ॥ ॥ अर्थ - अदरख और गुड दोनों समान भाग लेकर आधे पल के समान प्रथम दिन सेवन करे फिर प्रतिदिन आधा पल बढाकर पांच पल तक बढादे फिर आधा २ पल घटाकर आधे पल तक उतर आवै । इस तरह एक महिने तक इस प्रयोग का सेवन करता रहै, यूत्र, क्षीर और मांसरस का पथ्य सेवन करे । इससे गुल्मरोग, उदर रोग, अर्श, सूजन, प्रमेह, श्वास, प्रतिश्याय, अलसक, अविपाक, कामला, सूजन, मनोविकार, खांसी और कफ जाते रहते हैं । शोफपर घृत । घृतमा कनागरस्य कल्कस्वरसाभ्यां पयसा च साधयित्वा श्वयथुक्षवथूद राग्निसादैरभिभूतोऽपि पिवन् भवत्यरोगः ॥ ८ अर्थ - अदरख के कल्क और उसी के रसके साथ पकाया हुआ घी सूजन, हिचकी, उदररोग, अग्निमांद्य, इन रोगों को दूर कर देता हैं । अन्य प्रयोग | निरामो बद्धशमलः पिवेच्छ्वयथुपाडितः अष्टfiger | अ० १७ | त्रिकटुत्रिवृता इंतीचित्रकैः साधितं पयः ॥ मूत्र गोर्वा महिष्या वा सक्षीरं क्षीरभोजनः सप्ताहं मासमथवा स्यादुष्टक्षीरवर्तनः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - आमरहित और बद्धमलवाले शोष रोगी को त्रिकुटा, निसोथ, दंती, और चीता इन से सिद्ध किया हुआ दूध पीने को दे । अथवा गोमूत्र वा भेंस का मूत्र पीने को दे । दूधके साथ अन्न साथ पथ्य देवै । अथवा सात दिन तक वा एक महिने तक ऊंटनी का केवल दूध देना चाहिये । वा केवल दूधके अन्य प्रयोग | यवानकं यवक्षारं यवानीं पंचकोलकम् । मरिचं दाडिमं पाठां धान कामम्लवेतसम् वालविल्वं च कर्षाशं साधयेत्सलिलाढके । तेन पक्को घृतप्रस्थः शोफार्शोगुल्ममेहहा ॥ श्चर्थ - अजवायन, जवाखार, अजमोद, पंचमूल, कालीमिरच, अनार, पाठा, धनियां, अम्लवेत, कच्ची बेलागरी प्रत्येक एक कर्ष, घी एक प्रस्थ और जल एक आढक इनको पाकोक्त रीति से पकाकर सेवन करे तो शोफ, अर्श, गुल्म और प्रमेह नष्ट हो जाते हैं । अन्य प्रयोग | दनश्चित्रकगर्भाद्वा घृतं तत्तकसंयुतम् । पक्कं सचित्रकं तद्वदुः युंज्याच्च कालवित् ॥ धान्वंतरं महातिक्तं कल्याणमभया घृतम् । अर्थ-चीते के चूर्ण से मिले हुए दूध को जमाकर दही करले । फिर इस दहीको मधकर जो तत्र वनाया जाय, इस तक के साथ पका हुआ भी पूर्वोक्त गुणकारक होता है दोपानुसार कुशलवैद्य धान्वन्तर घृत, For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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