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से उत्पन्न हुई सूजन में विषनाशिनी क्रिया करनी चाहिये |
शोफ में वर्जित मांसादि । ग्राम्यानूपं पिशितमबलं शुष्कशाकं
गौड पिष्टं दधि सलवणं विज्जलं
धानावल्लूरमशनमथो गुर्वसात्म्यं
विदाहि
स्वप्नं रात्रौ श्वयथुगदावान्वर्जयेन्मैथुनं च ॥ अर्थ- ग्राम्य और आनूप मांस, निर्बल पशु का मांस, सूखा शाक, तिल, गुड के पदार्थ, पिष्टान्न, दही, नमक, जल रहित मद्य, ग्लटाई, भुना हुआ अन्न, सूखा मांस, पथ्य और अपथ्य एक साथ खाना, भारी असात्म्य और विदाही अन्न का सेवन, रात में सौना और मैथुन ये सब सूजन वाले रोगी . को वर्जित हैं । इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीकान्वितायां चिकित्सितस्थाने श्वयथचिकित्सितं नाम सप्तदशोऽध्यायः ।
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अष्टादशोऽध्यायः ।
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अष्टांगहृदय |
तिलान्नम्
मद्यमम्लम् ।
अथातो विसर्पचिकित्सितं व्याख्यास्यामः अर्थ - अब हम यहां से विसर्प चिकितिसत नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे । विसर्प में लंघनादि ।
आदावे विसर्पेषु हितं लंघन रूक्षणम् । रक्तrathi ani विरेकः स्नेहनं न तु
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अर्थ-विसर्प रोग में प्रथम ही लंघन,
रूक्षण, रक्तमोक्षण, वमन, विरेचन और स्नेहन हित हैं ।
विसर्प में वमनादि ।
प्रच्छर्दनं विसर्पध्नं सयष्टीद्रयवं फलम् । पटोलपिप्पलीनिंब पल्लवैर्वा समन्वितम् ॥
अर्थ- मुलहटी और इन्द्रजौ से युक्त मेनफल, अथवा पर्वल, पीपल, नीम के पत्ते इनसे युक्त मैनफल इनके द्वारा वमन कराने
से विसर्प रोग शांत होजाता है । विसर्प में विरेचनादि ।
रसेन युक्तं त्रायत्या द्राक्षायास्त्रैफलेन वा । विरेचनं त्रिवृच्चूर्ण पयसा सर्पिषाऽथवा ॥ योज्यं कोष्ठगते दोषे विशेषेण विशोधनम् ।
अर्थ - त्रायमाण के रस से, दाख के रस से वा त्रिफला के रससे निसोथ का चूर्ण अथवा दूध वा घी के साथ निसोथ का चूर्ण देने से दस्तों द्वारा विसर्प शान्त होजाता है । जो दोष कोष्ठ में पहुंचगया हो तो विशेषरूपसे शोधन देना चाहिये ।
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अल्पदोष में शमन विधि | अविशोध्यस्य दोषेऽल्पे शमनं चंदनोत्पलम् मस्तुनिंबपटालं वा पटोलादिकमेव वा । सारिवामलकोशीरमुस्तं वा कथितं जले ॥
अर्थ- जो अल्पदोष वाला विसर्परोगी शोधनक्रिया के योग्य न हो तो चन्दन और कमल, अथवा मोथा, नीम और पर्वल, अथवा पटोलादि गण अथवा सारिवा, आमला खस और मोथा ये सब क्वाथ शमन के लिये देने चाहिये ।
दुरालभादि पान दुरालभां पर्पटकं गुडूचीं विश्वमेषजम् । पाक्यं शीतकषायं वा तृष्णावीसर्पवान्
पिवेत् ॥ ६ ॥