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अ. १२ . चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
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छाल और धनियाँ, (३) खैर, दारुहलदी | तिक्तं शाकंमधुश्रेष्टा भक्ष्याःशुष्काः ससक्तवः बायविडंग और बच इन तीन प्रकार के धन्वमांसानि शूल्यानि परिशुष्कान्ययस्कृतिः
मध्वरिष्टासबा जीर्णाः सीधुः पक्करसोद्भवः॥ कषायों को शहत मिलाकर सेवन करने से
| तथाऽसनादिसारांवुदर्भाभो माक्षिकोदकम् । कफज प्रमेह शांत हो जाता है। ___ अर्थ-प्रमेहमें जौके वने हुए अपूप, सत्त पित्तज प्रमेह पर तीन प्रयोग । और बाटी आदि हितकर हैं । गौ वा घोडे उशीररोधार्जुनचंदनानां
की गुदासे निकले हुए जौ धोकर उनके भ. पटोलनिवामलकामृतानाम् । रोधावुकालीयकधातकनिां
पूपादि भी प्रमेह में हितकर है। बांसके चापित्ते त्रयःक्षौद्रयुताः कषायाः ॥ ८॥ वल भी पथ्य होते हैं । नीवार, श्यामाक, मा
अर्थ-() खस, लोध, अर्जुनकी छाल दि तृणधान्य, मूंग आदि पुराने शालचिविल और लाल चंदन, (२) पर्वल, नीम,आमला | साठी चांवल, तिल और सरसों की खल से और गिलोय, (३) लोध, नेत्रवाला, दारु- | बनाहुआ श्रीकुक्कुट संज्ञक खट्टा खल ये सब हलदी और धायके फूल । इन तीन योगोंका हितकारी हैं । कैथ, तिंदुक, जामन इनसे बपृथक् २ छाथ शहत मिलाकर सेवन करने नाये हुए राग और खांडवनामक पेय पदार्थ, से पित्तज प्रमेह शांत होजाता है। तिक्तशाक, मधु, त्रिफला, सूखा सत्त, शूल
प्रमेह पर अन्नपान विधि । पर भुना हुआ जांगल जीवोंका परिशुष्कमांस, यथास्वमेभिः पानान यवगोधूमभावनम्। | वक्ष्यमाण अयस्कृति, पुराना माधव मद्य, अ___ अर्थ-ऊपर कहे हुए रोधादि छःप्रयोगों
रिष्ट,आसब, पक्वरस से उत्पन्न हुआ सीधु, को यथोपयुक्त औषधों के साथ अन्न और |
असनादि सारबर्गों का काढा, कुशाका पानी जल तथा जौ और गेहूं की वनी हुई खाने | और मधुमिश्रित पानी ये सब प्रमेह पर की वस्तु भोजन के लिये देवै । हितकारी हैं। .. वातप्रमेह में चिकित्साविधि।
सक्तपानादि। . बातोल्वणेषु नेहांश्च प्रमेहेषु प्रकल्पयेत ॥ वासितेषु वराकाथे शर्वरीशोषितेष्वहः॥
अर्थ-वाताधिक्य प्रमेह में उक्त रोधादि यवेषु सुकृतान्सक्तन्सक्षौद्रान्सीधुना पिवेत् । व्यों द्वारा घृत तेल आदि स्नेह प्रस्तुत
___ अर्थ-त्रिफला के काढेमें रातभर जौ भिकरके उपयोग में लाना चाहिये ।
गो देव, दूसरे दिन उन जौओं को धूप में प्रमेह में पथ्यबिधि । सुखाकर सत्तू बना लेवे । इसमें शहत मिला अपूपसक्तुबाट्यादिर्यवानां विकृतिर्हिता। कर सीधुके साथ पान करै। गवाश्वगुदमुक्तानामथवा वेणुजन्मनाम् ॥ कफपित्त प्रमेहपर पान । तृणधान्यानि मुद्राद्याःशालिजीर्णः सपष्टिकः | शालसप्तावकंपिल्लवृक्षकाक्षकपित्थजमा श्रीकुक्कटोऽम्ला खलकस्तिलसर्षपकिट्टजः ॥ रोहीतकं च कुसुमं मधुनाऽद्यात्सचूर्णितमा कपित्थं तिदुकं जंवूस्तत्कृतारागखांडवाः। । कफपित्तप्रमेहेपु पिवेद्धात्रीरसेन यां।
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