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(५९८)
अष्टांगहृदय ।
अ०१३
योजनानां शतं यायात्खनेद्वा सलिलाशयान् | अर्थ-एलादिगणोक्त द्रव्यों द्वास सिद्ध गोशकून्मूत्रवर्तिर्या गोभिरेव सह भ्रमेत् ।
किया हुआ तेल ब्रणके रोपण में हित है । ___ अर्थ-निर्धन प्रमेहरोगी को उचितहै कि जूता और छत्री को छोडकर मुनियों की
आरग्वधादि का काथ उदवर्तन में,असना
| दि वर्गोक्त द्रव्योंका कषाय परिषेक में और बृत्ति का अबलंबन करके सौ योजन तक
| वत्सकादि गणोक्त द्रव्यों का काथ खानेपीने पैदल चलै अथवा जलाशयों को खोदे अथवा
में श्रेष्ठहै। गोवर और गोमूत्र का सेवन करता हुआ बनमें गौओं को चराता फिरै ।
पाठादि अवलेह ।
पाठा चित्रकशाङ्गष्टा सारिवा कंटकारिका . कृशकी औषध ।
सप्ताहवं कौटजं मूलं सोमवल्कं नृपद्रुमम् । बृहदौषधाहारैरमेदोमूत्रलैः कृशम् ॥ संचूर्ण्य मधुना लिह्यात्तद्वश्चर्ण नवायसम् ॥ .. अर्थ-प्रमेहरोगी यदि कृश होगया हो तो अर्थ-पाठा, चीता, महाकरंज, अनन्तऐसी औषधियों से युक्त आहार द्वारा उसकी
मूल, कटेरी, सातला, कुडाकीजड, सफेद पुष्ठि करै जो मेदोवर्दक और मूत्रकारक नहो।
खैर और अमलतास, इन सबका चूर्ण करके प्रमेह पिटका की चिकित्सा ॥
शहदके संग चाटे, अथवा नवायस चूर्णको शराविकाद्याः पिटिकाः शोफवत्समुपाचरेत् |
शहत के संग चाटे । अपक्का ब्रणबत्पक्काः
प्रमेह पर शिलाजीत । अर्थ-जो शराबकादि पिटिका पकी
| मधुमहित्वमापन्नो भिषभिः परिवर्जितः। न हो तो सूजनके सदृश और पकगई हों
शिलाजतुतुलामद्यात्प्रमहातः पुनर्नवः॥ तो व्रणके समान चिकित्सा करे । ____अर्थ--जो प्रमेहरोगी का प्रमेह मधुमेह पिडिका के पूर्वखर्पमें कर्तव्य। के रूपमें परिणत होगयाहो, और वैद्य चि
____तासां प्राग्रुप एव च ॥ ३८ ॥ कित्सा करना छोड चुकेहों, वह भी यदि सीरिवृक्षांबु पानाय बस्तमूत्रं च शस्यते ।। १०० पल शिलाजीत का सेवन करे तीक्ष्णं च शोधनं प्रायो दुर्विरेच्या हि मेहिनः
तो फिर नवीनता को धारण करसकताहै । अर्थ--पिटकाओं की पूर्व रूपावस्थामें हो
इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीकाबटादि क्षीरवृक्षों का क्वाथ और बकरी का |
न्वितायांचिकित्सितस्थानेप्रमेहचि. मत्र पान करोष अथवा तीक्ष्ण विरेचन देकर
कित्सितं नाम द्वादशोरोगी को शुद्ध करे क्योंकि प्रमेहरोगी को
ऽध्यायः ॥ १२ ॥ जुलाव कठिनता से लगताहै। .. . तैलादि विधि। . तैलमेलादिना कुर्याद्गणेन ब्रणरोपणम् । त्रयोदशोऽध्यायः। उद्वर्तने कषायं तु वर्गणारग्वधादिना ॥ अथाऽतो विद्रधिवृद्धिचिकित्सितं परिषेकोऽसानाद्येन पानान वत्सकादिना ।।...
व्याख्यास्यामः।
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