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(५४४)
अष्टांगहृदय ।
श्र०८
तैलेनाहिबिडालोष्ट्रवराहवसयाथवा। । हलका लेप करके छाया में सुखाले इनकी स्वेदयदनुपिंडेन द्रवस्वेदेन वा पुनः।
बत्ती बनाकर गुदा में लगादे इससे मस्से सक्तुना पिंडिकाभिर्वा स्निग्धानां तैलसर्पिषा | रास्नाया हपुषायावापिंडैर्वा कायंगधिकैः
शिथिल पड जाते हैं। अर्थ-दाहकर्मके अयोग्य, बाहर की
अन्य बत्ती। ओर निकले हुए, कफवातसे उत्पन्न, स्तब्ध
सजालमूलजीमूतलेहे वा क्षारसंयुते ॥२०॥
गुंजासूरणकूष्मांडबीजैवर्तिस्तथागुणा । ता, खुजली, बेदना, सूजन इनसे युक्त गुद
अर्थ-जीमूत के वीज और उसके फल कीलकों को विल्वमूल, चीता, जबाखार और
के जाल को पीसकर उसमें क्षार मिलादे कूठ इनसे सिद्ध किये हुए तैल द्वारा अभ्यक
फिर इसमें चिरमिठी, जमीकंद, और कुम्हकरके सेचन करे । अथवा सर्प, बिल्ली,
डा के बीज पीसकर मिलादे । इनकी वत्ती ऊंट, शूकर इनकी चर्बी से उन सब मस्सों
वनाकर गुदा में लगाने से पूर्ववत गुणको सेचित करै तदनन्तर पिंडस्वेद वा द्रव
फारक होती है । स्वेद से स्वेदन करे,अथवा घृत और तेलद्वारा
अर्श पर लेप । स्निग्ध सत्तूके गोले बनाकर स्वेदित करे,
स्नुक्क्षीराईनिशालेपस्तथा गोमूत्रकाकतैः अथवा रास्ना, वा हाऊबेर अथवा सहजने कृकवाकुशकृत्कृष्णानिशागुंजाफलस्तथा । के गोले बनाकर इनसे स्वोदित करे ।। ___ अर्थ-थूहर के दूध में मिली हुई हल्दी .
अर्शमें धूपनविधि । | का लेप करना हित है, अथवा मुर्गे की अर्कमूलं शमीपत्रं नृकेशाः सर्पकञ्चकम् । । बीट, पीपल, हलदी, और चिरमिठी इनको मार्जारचर्मसर्पिश्चधूपनं हितमर्शसाम् १८॥ |
गोमूत्रमें पीसकर इनका लेप करने से मस्से तथाश्वगन्धा सुरसा वृहती पिप्पली घृतम् ।। __ अर्थ-आक की जड, शमीपत्र, मनुष्य |
| शांत होजाते हैं। के बाल, सर्पकी काचली, बिल्ली का चर्म,
अन्य लेप।
नक्षीरपिष्टैः और घी इनकी धूनी देना मस्सों को हित
। हित षड्ग्रंथाहलिनीवारणास्थिभिः ॥२२॥ फारी है । अथवा असगंध, तुलसी, कटेरी, कुलीरशृंगीबिजयाकुष्टारुष्करतुत्थकैः ।। पीपल और घी इनकी अलग अलग धूनी | शिमूलकजै/जैः परश्वध्नर्निबजैः ॥ देना भी हितकारी है। सबकी मिलाकर | पीलुमूलेन विल्वेन हिंगुना च समन्वितैः ।
अर्थ-बच, कलहारी, हाथी की हड्डी, देना बहुतही उपकारी है। अर्शमें बत्ती ।
काकडासींगी, भांग, कूठ, भिलावेकी गुठली, धान्याम्लपिटर्जीमूतबीजैस्तज्जालकं मृदु॥ | नीलाथोथा, सहजने के बीज, मूली के लेपितं छायया शुष्कम् वर्तिणुद जशातनी। | बीज, कनेर के पत्ते, नीम के पते, पीलुकी
अर्थ-जीमूत के बीज और जीमूत के | जड, बेलगिरी और हींग इनका लेप करने फलका जालभाग इनको कांजी में पीसकर | से मस्से शांत होजाते हैं।
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