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म. ९
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
और सोंठ इनके साथ पकाया हुआ जल | कफपित्ताधिक अतिसार में पेया। पीनेको दे ।
शालिपर्णीबलाबिल्वैः पृश्निपा च क्षुत्क्षामातिसार में पथ्य ।
साधिता ॥ १३ ॥ युक्तेऽनकाले क्षुत्क्षामं लध्वनं प्रतिभोजयेत॥ दाडिमाम्ला हिता पेया कफपित्ते समुल्वणे तथा स शीघ्र प्राप्नोति रुचिमग्निवलं वलम्।।
'| अभयापिप्पलीमूलबिल्बैर्वातानुलोमनी ॥ ___ अर्थ-लंघन कराने के पीछे आतेसार
अर्थ-अतिसार में कफ और पित्त की रोगी को क्षुधा लगने पर उपयुक्त भोजन
अधिकता होने पर शालपर्णी, खरैटी, बेकाल में हलकॉ, अन्न खानेको दे । हलके
लगिरी, इनके साथ सिद्ध की हुई पेया में अन्न से रोगी की शीघ्रही अन्नमें रुचि
अनारदाने की खटाई डालकर पान करीव । यढ जाती है और उसकी जठराग्नि प्रदीप्त
तथा हरड, पीपलामूल और बेलगिरी इन तथा देह वलिष्ठ होता चलाजाता है।
के साथ पाक की हुई पेया का सेवन करने
से वायुका अनुलोमन होता है। अतिसार पर पान ।
वहुदोषातिसार में चिकित्सा । तणावंतिसोमेन यवाग्वा तर्पणेन वा ॥ | बिवद्धं दोषबहुलो दीप्ताग्निर्योऽतिसार्यते । सुरया मधुना वाऽथ यथा सात्म्यमुपाचरेत् | कृष्णाविंडगत्रिफलाकषायैस्तं विरेचयेत् ॥ ___ अर्थ- ऊपर की रीति से भोजन के | पेयां युज्याद्विरिक्तस्य बातघ्नदीपनैः कृताम्। पीछे तृषार्त रोगी को कभी तक्र, कभी । अर्थ-यदि अतिसाररोगी की जठराग्नि कांजी, कभी पेया, कभी तर्पण, कभी सुरा, | प्रज्वलित हो तथा विवद्ध मल थोडा थोडा कभी मधु,कभी मद्य द्वारा यथासात्म्य अ. करके निकलता हो तो उसको पीपल, र्थात् प्रकृति के अनुकूल उपचार करै।।
बायबिडंग और त्रिफला इनके काढे से __ अतिसाररोगी को भोजनादि ।।
बिरेचन देवै । विरेचन से शुद्ध होने के भोज्यानि कल्पथदूर्व ग्राहिदीपनपाचनैः ।।
पीछे वातनाशक और अग्निसंदीपन औबालविल्वशठीधायहिंगुवृक्षाम्लदाडिमैः । षधी द्वारा सिद्ध की हुई पेयापान करावै । पलाशहपुषाजाजीयवानीविडसेंधवैः॥ । आमातिसार में चिकित्सा। लघुना पंचमूलेन पंचकोलेन पाठया। आमे परिणते यस्तु दीप्तेऽनावुपवेश्यते ॥
अर्थ-ऊपर कही हुई रीति से चिकि- सफेनपिच्छं सरुजं सविबंधं पुनः पुनः। सा करके प्राही, अग्निसंदीपन और पाचन
| अल्पाल्पमल्पं समलं निर्विवासप्रवाहिकम्॥
दधिलघृतक्षीरैः स शुठी सगुडां पिवेत् । औषधियों द्वारा कल्पना करके भोजन देवै । स्विन्नानि गुडतैलेन भक्षयेद्वदराणि वा॥ वे द्रव्य ये हैं यथा-कच्ची बेलगिरी,कचूर, | गाढविविहितैः शाहुस्नेहैस्तथा रसैः॥ धनियां,हींग,वि जौरा,अनार,ढाक,जीरा,अज
क्षुधितं भोजयेदेनं दधिदाडिमसाधितैः ॥ पायन, बिड नमक, सेंधानमक,लघु पंचमूल |
शाल्योदनं तिलैर्भाषैर्मुद्रेर्वा साधु साधितम्
शुठ्या मूलकपोतायाः पाठायाः और पाठ ।
स्वतिकस्यवा॥ ॥
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