________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
अ० . ६.
www.kobatirth.org
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासभेत ।
अन्य तैल
बिल्यं रास्त्रां यावान्कोले देवदारुं पुनर्नवाम् ॥ कुलत्थान्पंचमूलं च पक्त्वा तस्मिन्पचेज्जले तैलं तन्नावने पाने वस्तौ च विनियोजयेत्२७
अर्थ- बेलगिरी, रास्ना, जौ, बेर, देवदारू, सांठ, कुछथी और पंचमूल इनके काढे में सिद्ध किया हुआ तेल नस्य, पान और वस्तिकर्म में प्रयोग किया जाता है। यह भी पूर्वोक्त गुणविशिष्ट होता है ।
सौवर्चलादि घृत |
सौवर्चलस्य द्विपले पध्यापचाशदस्यिते । घृतस्य साधितःप्रस्थो हृद्रोगश्वास गुल्मजित् अर्थ- संचलनमक दो पल, हरड पचाल नग, घृत एक प्रस्थ इनका पाक हृदयरोग, सास और को जीत लेता है | गुल्म
शुंठयादि घृत । शुडीवयस्थालवण कायस्थाहिंगुपौष्करैः ।
पंचकोलादि कल्क |
पथ्यया च श्रुतं पार्श्वहृद्रुजागुल्माजद् घृतम् | पञ्चकोलशठी पथ्या गुड बीजाहव पौष्करम् अर्थ- सोंठ, आमला, सेंधानमक, का वारुणीकल्कितम् भ्रष्टम् यमके लचणान्वित्तम् कोली, हींग, पुष्करमूल और हरड इनके हत्पार्श्वयोनिशूलेषु खादेद्गुल्मोदरेषु च ॥ कांटे में घी को पकाकर पान करने से पसली का दर्द, हृद्रोग, और गुल्नरोग नष्ट होजाता है ।
अर्थ-पंचकोल, कचूर, हरड, गुड, बिजै. सार, पुष्करमूल, इनसब द्रव्यों को वारुणी नामक सुरामें पीसकर तेल और घी में भूनले फिर इसमें सेंधानमक डालकर सेवन करै तो हृदयशूल, पार्श्वश, योनिशूल, गुल्मरोग और उदररोग दूर होजाते हैं ।
पुष्करादि घृत | पुष्करावराठीशुंठीबीजपूरजटाभयाः । पीताः कल्कीकृताः क्षारघृताम्ललवणैर्युताः ॥ विकर्तिकाशूल हराः काथः कोष्णश्च तद् गुणः यवानीलवणक्षारवचा जाज्यौषधैः कृतः ३१ सप्ततिर्दा रुबी जाह्नव विजयाशठिपौष्करैः ।
।
अर्थ - पुष्करमूल, कचूर, सोंठ, बिजौरा की जड, हरड़ इन सबका कल्क तथा जवाखार, घृत, कांजी और सेंधानमक ये मिला६६
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ५२-१ )
कर सेवन करने से विकर्तका और शूल नष्ट हो जाते हैं । तथा अजवायन, सेंधानमक, जवाखार, वच, कालाजीरा, सोंठ, इनसे सिद्ध किया हुआ काढा तथा नवमल्लिका देवदारू, बिसार, हरड, कचूर, और पुकरमूल इनका काढा विकर्तका रोग को दूर करता है । हृदय के आवर्तन से जो छेदनवत् पीडा होती है उसे बिकर्तका कहते हैं ।
1
बात हृद्रोग में स्वेदादि । स्निग्धाश्चेह हिताः स्वेदाः संस्कृतानिघृतानि च अर्थ- वातज हृद्रोग में स्निग्ध स्वेद हितकारी होता है तथा संस्कार किया हुआ वृत भी हितकारी है ।
पंचमूलादि साधित जल । लघुना पंचमूलेन शुंड्या वा साधितं जलम् वारुणीदधिमंड वा धान्याम्लं वा पिवेत्तृषि |
लघु पंचमूल, अथवा सोंठ के साथ सिद्ध किया हुआ जलपान करै अथवा वारुणी नामक मद्य, वा दधिमंड वा धान्याम्लका से
For Private And Personal Use Only