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चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
(५४३ )
सिद्धं मधुरबर्गेण रसा यूषाः सदाडिमाः। । करीब । अथवा आमले वा हरड के काढेमें षष्ठिकाः शालयोरक्तायवाःसर्पिश्च जीवनम् पकाकर सेवन करे। कल्याणकं महातिक्तं षट्पलं पयसाग्निकः। पिप्पल्यो वा शिलावंवा रसायनविधानतः दोषवलानुसार क्रिया । त्रिफला वा प्रयोक्तव्या सघृतक्षौद्रशर्करा।। कुर्याक्रियां यथोक्तां च यथादोषबलोदयम्॥ अर्थ-शीतल प्रलेप, मणिधारण, शीतल
अर्थ-उक्त रोगमें दोष और बलके अनुपरिषेक, शीतल पंखोंकी हवा, खांड. दाख. | सार यथोक्त क्रिया करना चाहिये । ईख, खिजूर, खंभारी फल, तथा मधुर व
____ मदादि में नस्यादि। गोक्त द्रव्योंकेसाथ सिद्ध कियाहुआ दूध,और
पंचकर्माणि चेष्टानि सेचन शोणितस्य च ।
सत्त्वस्यालंबन शानमगृद्धिर्विषयेषु च ॥ मांसरस, अनारदाने की खटाईसे युक्त मुद्गा.
____ अर्थ-मदात्यय रोगोंमें पंचकर्म ( वमन, दि यूष, शाली और साठी चांबलों का भात
विरेचन, आस्थापन, अनुवासन और नस्य ) जौ, उन्मादचिकित्सितोक्त कल्याणक घृत, । रक्तमोक्षण ( फस्द खोलना ), सत्वावलंबीज्ञान, कुष्टचिकित्सितोक्त, महातिक्तघृत, राजक्ष्म- और विषयोंमें अनभिलापता ये सब करने चिकित्सितोक्त, षट्पलघृत, दूधके साथ चाहिये । चीता, रसायन विधि के अनुसार पीपल और सन्यासोक्त क्रिया। शिलाजीत, तथा घृत, मधु और खांड के । मदेष्वतिप्रवृद्धेषु मूर्छायेषु च योजयेत् ।
| तक्ष्णिं सन्यासविहितं विषघ्न बिषजेषु च ॥ साथ त्रिफला ये सव गदरांग में हितकारी हैं | तो
अर्थ-मद और मूर्छा रोगोंके अति प्रप्रसक्तवंग में कर्तव्य ।
वल होने पर संन्यासचिकित्सा में कहीहुई प्रसक्तवेगेषु हितं मुखनासावरोधनम् ॥ पिवेद्वा मानुषीक्षीरं तेन दद्याश्च नावनम् ।
| तीक्ष्ण नस्यका प्रयोग करे । विषज मदरोग मृणालबिसकृष्णा बा लिह्यात्क्षौद्रेण साभया में विषनाशनी क्रिया करनी चाहिये । दुरालभां बा मुस्तां बाशीतेन सलिलन वा। । सन्यास चिकित्सा । पिबेन्मारचकोलास्थिमजाशीराहिकेसरम् ॥ आशु प्रयोज्य सन्यासे सुतीक्ष्णं नस्यमंजनम् धात्रीफलरसे सिद्धं पथ्याक्वाथेन वा घृतम्। धूमप्रधमनं तोदः सुचीभिश्च नखांतरे ॥ __ अर्थ-मदादि रोगोंमें मद का वेग नि | केशानां लुंचनं दाहो दंशो दशनवृश्चिकैः। रंतर होनेपर हाथोंसे रोगीके मुख और नाक
कट्वम्लगालनं वक्त्रे कपिकच्छ्ववर्षणम् ।
उत्थितो लब्धसंज्ञश्च लशुनस्वरसं पिवेत्। रोक देने चाहिये । अथवा स्त्रीका दूध पावै
खादेत्सव्योषलवणं वीजपूरककेसरम् ॥ और स्त्रीके दुधकी ही नस्य देवै । अथवा क- लध्वनप्रतितीरणोष्णमद्यात्त्रोतोविशुद्धये। मलनाल, पीपल और हरडको शहतके साथ । अर्थ-संन्यास रोगमें तीक्ष्ण नस्य और चाटै, अथवा दुरालभा वा मोथा शहतके संग तीक्ष्ण अंजनका शीघ्र प्रयोग करना चाहिये चाटै, अथवा कालीमिरच, वेरकी गुठली की | नाक में धूआं देना, नखोंके बीचमें सुई छे. मिंगी, खस और केसर जलमें घोटकर पान | दना, केशोंका खींचना, दाह, बीछुओं से क
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