________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ०१६
निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
(४४७ )
कफावृत प्राणवायु ।
प्राणादि वायुका परस्पर आवरण । लेष्मणात्वावृते प्राणे सादस्तंद्रारुचिर्वमिः । प्राणादयस्तथाऽन्योन्यमावृण्वंतिष्ठीवनक्षवथूवारनिः श्वासोच्छ्वाससंग्रहः ।
___ यथाक्रमम् । __ अर्थ प्राणवायके कफाबत होनेपर अंग सर्वेऽपि विंशतिविधम विद्यादावरणम्
च तत् ॥ ५॥ में शिथिलता, तंद्रा, अरुचि, वमन, ष्टीवन
___ अर्थ--जैसे प्राणादि बायु पित्त और क(थूक ), छींक, डकार, निःश्वास, और
फसे आवृतहै, वैसेही ये आपस में एक दूसरे उच्छ्वास इनमें विवंधता होतीहै |
को आवरण करती हैं । आवरण' का क्रम । कफाबृत उदानवायु । उदाने गुरुगात्रत्वमरुचिर्वाक्स्वरग्रहः ।
यहहै कि प्राण वायु उदानादि चार वायुको बलवर्णप्रणाशश्च
आवरण करतीहैं वैसेही उदानादि चार वायु ___ अर्थ-उदान वायु के कफाबृत होनेपर प्राण वायु का आवरण करती हैं वैसेही उदान 'शरीरमें भारापन, अरुचि, वाकरोध, स्वर
| वायु व्यानादि तीन वायुका अवरण करती क्षय, बल और वर्ण का नाश होताहै ।।
है और व्यानादि तीन वायु उदानवायु का कफावृत व्यानवायु ।
आवरण करती हैं । व्यान वायु समान और व्याने पास्थिवाग्ग्रहः ॥ ५७ ॥
अपान का आवरण करती हैं और समान गुरुतांऽगेषु सर्वेषु स्खलितं च गतौ भृशम् ।
और अपान व्यानका आवरण करती है। अर्थ-कफाबृत व्यान वायुमें अस्थि की ऐसे दो दो ती नतीन द्वारा आवरण का सांधयों में जकडन, वाकरोध, संपूर्ण अंगों / वर्णन किया गयाहै ये सब आवरण बीस * में भारापन, गमनमें अत्यन्त स्खलन (बार
। प्रकार के हैं वार गिर पडना ], होताहै ।
आवरण चिन्ह ।
निश्वासोच्छ्वाससंरोधः प्रतिश्यायः शिरोकफावृत समान वायु ! समानेऽतिहिमांगत्वमस्वेदो मंदवान्हिता। हृद्रोगो मुखशोषश्च प्राणेनादान आवृते ।। - अर्थ-कफावृत समान वायुमें शरीर में । अर्थ-जव प्राणवायु उदानवायु का अत्यन्त शीतलता, पसीनों का न आना आवरण करलेता है, तव उसासलेने निकाऔर अग्निमांद्य होताहै।
लने में रुकाकट होती है, तथा प्रतिश्याय, कफाबृत अपान वायु । शिरोग्रह, हृद्रोग और मुखशोष ये उपद्रव अपाने सकफम् मूत्रशकृतः स्यात्प्रवर्तनम् । होते हैं। इति द्वाविंशतिविधं वायोरावणं विदुः४९ ॥
उदानावृत प्राण के लक्षण । अर्थ-कफावत अपान वायुमें मल और
| उदानेनावृते प्राणे वीजबिलसंक्षयः।। मूत्रकी अधिक प्रवृत्ति होतीहै । इस तरह । अथे-उदानवायु द्वारा प्राणवायु के वायुके बाईस प्रकार के आवरणों का वर्णन आवृत होजाने पर वर्ण, ओज और बलका किया गयाहै ।
नाश होजाता है।
ग्रहः।
For Private And Personal Use Only