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चिकित्सिस्थान भाषाटीकासमेत ।
(४५९)
अर्थ-हरड, धनियां, नागरमोथा, सोंठ, अर्थ-महुआ का फूल, दाख, त्रायमाण रोहिसतृण, पित्त रापडा, कायफल, वच, भां- फालसा, खस, कुटकी, त्रिफला, और डंगी, और देवदारू इनके काथमें हींग और खंभारी इनका हिमकापाय बनाकर उचित शहत मिलाकर पीनेसे कफवातज्वर,कुशिशू कालमें पीना चाहिये यह एकदोषज, द्विल, हृदयशूल, पार्ववेदना, कंठरोग,मुखशो- दोषज और त्रिदोषज सब प्रकार के ज्वरों थ, खांसी और श्वास नष्ट होजाते हैं। को नष्ट करदेता है। . कफपित्त ज्वरमें औषध ।।
अन्य कषाय । आरग्वधादिः सौद्रः कफपित्तज्वरं जयेत् जात्यामलकमुस्तानि तद्वद्धन्वयवासकम् ॥ तथा तिक्तावृषाशीरत्रायतीत्रिफलामृताः। वद्धविटू कटुकाद्राक्षात्रायंतांत्रिफलागुडान
अर्थ-आरग्वधादि गणोक्त द्रव्यों का का- | अर्थ-चमली के पत्ते, आमला, नागरथ अथवा कुटकी, असा, खस, त्रायंती और । मोथा और धमासा इनका भी हिमकाथ सब त्रिफला इनका वाथ इन दोनों में शहत मि- प्रकारके ज्वरोको दूर करता है । जिसको लाकर पीने से कफपित्तम्बर का नाश हो मल की विवद्वता रहती हो उसे कुटकी, जाता है।
दाख, त्रायंती, त्रिफला और गुड इनका .. सन्निपातज ज्वरकी चिकित्सा। क्याथ देना चाहिये । . सन्निपातयो व्याकी देवदा शायनम् ।। जीर्ण औषध में कर्तव्य । पटोलपत्र रत्वकालागुनम् ॥ जोगीयोऽन्नं याद्यमाचरेच्छ्लेप्मयान्न तु ॥
अर्थ-संनितिचर में की, देवास, पेवा कफ वयात करघु वृष्टिवत् । हलदी, नागरमोथा, परवल के पत्ते, नीमकी । अर्थ-औषध जीर्ण होने के पीछे पेयाछाल, त्रिफला और कुरकी इनका काथ पा- दि पूर्वोक्त अन्न का भोजन करना चाहिये न करावे ।
परंतु जिसको कफका विकार हो वह औषध बातकफाधिक्य धरमें चिकित्सा। पचने परभी पेया पान न करे, क्योंकि पेया नागरं पौष्करं मूलं गुङ्गनी कंटकारिका । कफको बढाती है, जैसे धूल में हुई वर्षा स कासश्वासपाच वातलमात्तरे ज्वरे
कीचको वढाती है । अर्थ-सोंठ, पुष्करमूल, गिलोय, कटेरा,
तंत्रकार का मत । इनका काढा खांसी, श्वास और पसगी के लसाभिन्न देशमा मतः प्रागपि योजयेत् ॥ दर्दसे युक्त वातकफाधिक्य संनिपात ज्याको यूशन कुलत्या कामाता लघन्।
रूक्षास्तिक्तरसोधतान हूद्यान् रुचिकरान्दूर करता है।
पटून् ॥ ७१॥ सर्वज्वर पर कषाय ।
अर्थ-इसलिये कफसे क्लिन्न देहवाले मधूकपुष्प मृद्वीका त्रायमाणा परूषकम् ।। सोशीरतिक्ता त्रिफला काश्मय कल्पयद्धिमम ।
- रोगी को प्रथम कुलथी, चना और अनार कषायं तपिबन कालेज्वरान्सर्वान्व्यपोहति। आदि से बनाये हुए लघुपाकी, रूक्ष (घृत
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