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अ.२
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
(४७९ )
रक्तपित्तनाशक कषाय । । अर्थ-पित्तजरमें जो जो कषाय कहेगये। चंदनोशीरजलदलाजमुद्रकणायवैः॥ हैं उनमें शहत मिलाकर रक्तपित्त में सेवन बलाजले पर्युषितैः कषायो रक्तपित्तहा। करने चाहिये । अर्थ-चंदन,खस, मोथा, धानकी खील, |
छागादिपय । मूंग, पीपल और जौ इनसव को रात्रभर | कषायैर्विविधैरेभिर्दीप्तेऽग्नौ विजिते कफे। पानी में भिगोदे, दूसरे दिन खरैटी के जल
रक्तपित्तं न चेच्छाम्येत्तत्र वातोल्बणे पयः॥
युज्याच्छागं शृतं तद्वद्व्यं पंचगुणेऽभसि । में इनका काढा करले इससे रक्तपित्त जा
पंचमूलेन लघुना शृतं वा ससितामधु ॥ ता रहता है।
जीवकर्षभकादाक्षावलागोक्षुरनागरैः । - रक्तकी अतिप्रवृत्ति का उपाय ।। पृथक्पृथक्श्रतं क्षीरं सघतं सितयाऽथवा ॥ प्रसादचदनांभोजसत्य मृङ्गष्टलोष्टजः ॥ अर्थ-ऊपर कहे हुए अनेक प्रकारों के सुशीतः ससिताक्षौद्रः शाोणतातिप्रवृ. |
कषाय से जठराग्नि के प्रदीप्त होनेपर और - त्तिजित् ।।
कफके विजित होनेपर भी जो रक्तपित्त अर्थ-चंदन, कमल, खस, सौराष्ट्रमृत्ति | का, और मंडूर इन सबद्रव्यों के काढे को
शांत न हो तो वाताधिक्य रक्तपित्त में पांच अत्यंत ठंडा करके शहत और मिश्री मिला
गुने जल में बकरी वा गौका का दूध कर पीनेसे रक्तकी अतिप्रवृति दूर हो जातीहै
औटाकर पिलाना चाहिये । अथवा लघुपं
चमूल डालकर औटाया हुआ गौका दूध इक्षु जल। आपोथ्य घा नवे कुंभे प्लावयेदिक्षुगंडिकाः॥
छानकर मिश्री औरं मधु मिलाकर देने से स्थितं तद्गप्तमाकाशे रात्रि प्रातः श्चतं जलम् | रक्तपित्त शांत हो जाता है, अथवा जीवक, मधुमृद्वीकसांभोजकृतोत्तंसं च तद्गुणम् ॥ ऋषभक, दाख, खरैटी, गोखरू और सोंठ ..अर्थ-ईखकी गंडेलियों को अच्छी तरह | इनमें से अलग अलग हरएक के साथ कूटकर मिट्टीके नवीन पात्रमें जलभर कर | औटाया हुआ दूध घृत और मिश्री मिलाकर डालद आर इस घडे के मुखपर कांडादि | पीना रक्तपित्त में हित है। पड़ने के भयसे कपडा ढककर रात्रिमें खुली मूत्रमार्गगामी रक्तकी चिकित्सा । . हुई जगहमें रख दे । प्रातःकाल इस जलको गोकंटकाभीरुश्रुतं पर्णिनीभिस्तथा पयः । पकाकर छानले और इसमें शहत मिलाकर
हत्याशु रक्त सरुज विशेषान्मूत्रमार्गगम् ॥
अर्थ-गोखरू और सितावरं डालकर विकसित कमलको उसपर लगादे । वहजल पूर्ववद् गुणकारी है।
पकाया हुआ दूध, अथवा चारों पर्णी
( शालिपर्णी, पृश्निपर्णी, मुद्गपर्णी और अन्य कषाय ।
माषपर्णी ) इनके साथ पकाया हुआ दूध "ये च पित्ते ज्वरे चोक्ताः कषायास्तंतोश्च |
• योजयेत् “ ।| वेदना साहत रक्त को दूर करता है तथा
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