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(४९२)
अष्टांगहृदय ।
सुधामतरसं
प्रात घृतम्।
और अश्वकर्ण इनको डालकर दूध औटावै, शृंगाटकं पयस्या च पंचमूलं च यल्लघु ।९४ इस दूधसे निकले हुए घीकेसाथ शालीचा
| द्राक्षाक्षौडादि च फलं मधुरस्निग्धवृंहणम् ।
तैःपचेत्सर्पिषः प्रस्थं कर्षाशैःश्लक्ष्णकल्कितैः वलों के भातका सेवन कर इसके सेवन से
क्षीरधात्रीविदारीक्षुछागमांसरसान्वितम् । वःक्षस्थल के भीतरका घाव, तथा शुक्र, बल प्रस्थार्ध मधुनः शीते शर्करार्धतुलारजः। ९६ और इन्द्रियों की क्षीणता मिटजाती है। पलार्धकं च मरिच त्वगेलापत्रकेसरम् । । . अभ्यंगादि।
विनीय चूर्णितं तस्माल्ह्यिान्मात्रां यथाव
लम् ॥ ९७ ॥ वातपित्तार्दितेऽभ्यंगो गात्रभेदे घृतैर्मतः ॥
अमृतप्राशमित्येतनराणममृतं घृतम् । तैलैश्चानिलरोगघ्नैः पीडिते मातारश्चना।
सुधामतरसं प्राश्यं क्षीरमांसरसाशिना ॥ अर्थ-बातपित्तसे पीडित होने तथा श.
नष्टशुक्रक्षतक्षीणदुर्वलव्याधिकर्शितान् । रीरके फटजाने पर घृतका मर्दन करे । अ.
स्त्रीप्रसक्तान कृशान् वर्णस्वरहीनांश्च वृहथवा वातसे पीडित होनेपर बातनाशक तेल
येत् ॥ ९९ ॥ अथवा घीका मर्दन करै।
कासहिघ्माज्वरश्वासदाहतृष्णास्र पित्तनुत् जीवनीयघृत ।
पुत्रदं छर्दिमू हृद्योनिमृत्रामयापहम् ॥ हृत्पाार्तिषु पानं स्याज्जीवनीयस्य सर्पिषः |
___ अर्थ-जीवनीयगणोक्त द्रव्य, सौंठ, सिकुर्याद्वा वातरोगघ्नं पित्तरक्तविरोधि यत् ।
तावर, वीरा, सांठ, खरैटी, भाडंगी, केंच अर्थ यदि कास रोग में हृदय तथा
के बीच, कचूर, भूम्यामलकी, पीपल, सिंपसली में दर्द होता हो तो जीवनीय गणो- घाडा, दुद्धी, लघुपंचमूल, दाख, और अखक्त द्रव्यों के साथ पकाया हुआ घृत पान
रोटादि मधुर, स्निग्ध और वृंहणफल, इनमें करावे । अथवा जो घृत पित्तरक्त की अवि. से जो जो मिलसकें प्रत्येक एक कर्ष लेकर रोधी और वातनाशक औषधोंसे बनाया जा• महीन पीसकर लुगदी बनालेवे और दूध, ताहै, वह देना हितहै।
आंवले का रस, विदारीकंदका रस, ईखका
| रस, और बकरे के मांसरस, ये मिलाकर क्षतकासमें घृतविषेश। यष्टयावानागबलयोः क्वाथे क्षीरसमेघृतम् ।
इनमें एक प्रस्थ घी पकावे, ठंडा होनेपर पयस्यापिप्पलीवांसकिल्कैः सिद्ध क्षय हितम
इसमें आधा प्रस्थ मधु, शर्करा आधातुला अर्थ-मुलहटी और नागवलाके क्वाथमें तथा कालीमिरच, दालचीनी, इलायची, बराबर दूध मिस्लादे, तथा दूधी, पीपल और | तेजपात, और नागकेसर, प्रत्येक दो तोले वंशलोचन इनका कल्क डालकर घी पकावै। इन सबको उस घी में डालदेवे । इसतरह यह घी क्षतकास में हितकारी होताहै ।। घी को तयार कर रोगी के बल और मात्रा
___ अमृतपाश अबलेह । के अनुसार देवे । इस घृतका नाम अमृतजीवनीयो गणःशुठी वरी वीरा पुनर्नवा ॥
प्राशहै । यह मनुष्यों को अमृतके समान बलाभागी स्वगुप्ताह्वाशठी तामलकोकणा। गुणकारी है, जैसे नागों को सुधा और दे
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