________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[५१२]
अष्टांगहृदय ।
अ०५
त्वगेलादि चूर्ण । | देता है और स्वर को शुद्ध करदेता है । बगेलापिप्पलीक्षीरीशर्कराद्विगुणाः मात्
नस्यबिधि । चर्णिता भक्षिताःक्षौद्रसर्पिषा च बले हिताः तैलं वा मधुकं द्राक्षापिप्पलीकृामनुत्फलैः ॥ स्वयां कासक्षयश्वासपार्श्वरुक्कफनाशनाः |
हंसपाद्याश्च मूलेन पक्कं नस्तो निषेचयेत् । अर्थ-दालचीनी, इलायची, पीपल, वं.
अर्थ-मुलहटी, दाख, पीपल, वायबि. शलोचन और खांड ये सत्र उत्तरोत्तर दुगुने
डंग, मैनफल और हंसपदी की जड, इनके दुगर्ने लेकर पीसकर चूर्ण बना लेवे, इस
द्वारा पकाया हुआ तेल नाक में डाले । चूर्णको घी और शहत मिलाकर चाटै इस
उक्तरोगमें अनुपान । के सेवनसे वलकी वृद्धि,स्वरमें उत्तमता त
सुखोदकानुपानं च सार्पष्कं च गुडौदनम् था खांसी, क्षयी, श्वास, पसली का दर्द अश्नीयात्पायसंचैव स्निग्धं स्वदं नियोजयेता और कफ नष्ट हो जाते हैं।
___ अर्थ-गुड और चांवल का भात घी अन्यप्रयोग।
के साथ खाकर सुखोदक अनुपान करै विशेषात्स्वरसादेऽस्यनस्य धूमादि योजयेत् ।
अथवा खीर में घृत मिलाकर खाने के पीछे अर्थ- जो यक्ष्मारोगी के स्वरमें क्षीणता
सुखोदक ( थोडा गरम जल ) अनुपान होजाय तो नस्य और धूमादि का विशेष
करे और स्निग्ध स्वेदन का प्रयोग करना रूप से प्रयोग करना चाहिये ।
चाहिये । स्वरसाद में चिकित्सा। तत्रापि वातजे कोणं पिबेदौत्तरभाक्तकम् | पित्तोद्भवस्वरक्षयकी चिकित्सा । कासमर्दकवार्ताकीमार्कवस्वरसैबृतम्। पित्तोद्भवे पिबेत्सर्पिः शुतशीतपयोनुपः साधित कासजित्स्वर्य सिद्धमार्तगलेन वा ।। क्षीरीवृक्षांकुरकाथकल्कसिद्धं समाक्षिकम् । . अर्थ--इन सब स्वरक्षय रोगों में से वातज
| अश्नियाञ्च ससर्पिष्कं यष्टीमधुकपायसम् । स्वरक्षय में कसोंदी, बेंगन, और भांगरा
___ अर्थ-पित्तके कारण उत्पन्न हुए स्वरक्षइनके स्वरस में सिद्ध किया हुआ घृत
य में दूधवाले वृक्षों के अंकुरों के क्वाथ और अथवा नीलकोरंट में सिद्ध घृत ईर्षदुष्ण
कल्कमें सिद्ध किया हुआ घृत सेवन करे । भोजन करने के अंत में सेवन करे इस से
अथवा मुलहटी, वृत और खीरका भोजन खांसी जाती रहती है और स्वर शुद्ध हो
करके ऊपरसे औटाया हुआ ठंडा दूध पावै । जाता है।
बलादिसिद्ध सर्पि। क्षारोगपर बदरीपत्र। बलाविदारी गधाभ्यां विदार्या मधुकेन च । बदरीपत्रकल्कं वा घृतभृष्टं ससैंधवम् ।। सिद्धं सलवंण सर्पिनेस्यं स्वर्यमनुत्तमम् ॥
अर्थ-बेरके पत्तों का कल्क घी में भून अर्थ-खरैटी, शालपर्णी, विदारीकंद, कर और सेंधा नमक डालकर भोजन करने और मुलहटी इनसे सिद्ध किया घृत सेंधा के पीछे सेवन करने से खांसी को दूर कर | नमक मिलाकर सेवन करने से स्वरको शुद्ध
For Private And Personal Use Only