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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सिस्थान भाषाटीकासमेत । (४५९) अर्थ-हरड, धनियां, नागरमोथा, सोंठ, अर्थ-महुआ का फूल, दाख, त्रायमाण रोहिसतृण, पित्त रापडा, कायफल, वच, भां- फालसा, खस, कुटकी, त्रिफला, और डंगी, और देवदारू इनके काथमें हींग और खंभारी इनका हिमकापाय बनाकर उचित शहत मिलाकर पीनेसे कफवातज्वर,कुशिशू कालमें पीना चाहिये यह एकदोषज, द्विल, हृदयशूल, पार्ववेदना, कंठरोग,मुखशो- दोषज और त्रिदोषज सब प्रकार के ज्वरों थ, खांसी और श्वास नष्ट होजाते हैं। को नष्ट करदेता है। . कफपित्त ज्वरमें औषध ।। अन्य कषाय । आरग्वधादिः सौद्रः कफपित्तज्वरं जयेत् जात्यामलकमुस्तानि तद्वद्धन्वयवासकम् ॥ तथा तिक्तावृषाशीरत्रायतीत्रिफलामृताः। वद्धविटू कटुकाद्राक्षात्रायंतांत्रिफलागुडान अर्थ-आरग्वधादि गणोक्त द्रव्यों का का- | अर्थ-चमली के पत्ते, आमला, नागरथ अथवा कुटकी, असा, खस, त्रायंती और । मोथा और धमासा इनका भी हिमकाथ सब त्रिफला इनका वाथ इन दोनों में शहत मि- प्रकारके ज्वरोको दूर करता है । जिसको लाकर पीने से कफपित्तम्बर का नाश हो मल की विवद्वता रहती हो उसे कुटकी, जाता है। दाख, त्रायंती, त्रिफला और गुड इनका .. सन्निपातज ज्वरकी चिकित्सा। क्याथ देना चाहिये । . सन्निपातयो व्याकी देवदा शायनम् ।। जीर्ण औषध में कर्तव्य । पटोलपत्र रत्वकालागुनम् ॥ जोगीयोऽन्नं याद्यमाचरेच्छ्लेप्मयान्न तु ॥ अर्थ-संनितिचर में की, देवास, पेवा कफ वयात करघु वृष्टिवत् । हलदी, नागरमोथा, परवल के पत्ते, नीमकी । अर्थ-औषध जीर्ण होने के पीछे पेयाछाल, त्रिफला और कुरकी इनका काथ पा- दि पूर्वोक्त अन्न का भोजन करना चाहिये न करावे । परंतु जिसको कफका विकार हो वह औषध बातकफाधिक्य धरमें चिकित्सा। पचने परभी पेया पान न करे, क्योंकि पेया नागरं पौष्करं मूलं गुङ्गनी कंटकारिका । कफको बढाती है, जैसे धूल में हुई वर्षा स कासश्वासपाच वातलमात्तरे ज्वरे कीचको वढाती है । अर्थ-सोंठ, पुष्करमूल, गिलोय, कटेरा, तंत्रकार का मत । इनका काढा खांसी, श्वास और पसगी के लसाभिन्न देशमा मतः प्रागपि योजयेत् ॥ दर्दसे युक्त वातकफाधिक्य संनिपात ज्याको यूशन कुलत्या कामाता लघन्। रूक्षास्तिक्तरसोधतान हूद्यान् रुचिकरान्दूर करता है। पटून् ॥ ७१॥ सर्वज्वर पर कषाय । अर्थ-इसलिये कफसे क्लिन्न देहवाले मधूकपुष्प मृद्वीका त्रायमाणा परूषकम् ।। सोशीरतिक्ता त्रिफला काश्मय कल्पयद्धिमम । - रोगी को प्रथम कुलथी, चना और अनार कषायं तपिबन कालेज्वरान्सर्वान्व्यपोहति। आदि से बनाये हुए लघुपाकी, रूक्ष (घृत For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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