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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४६०] अष्टांगहृदय । अ०१ में भुनेहुए नहीं ), तिक्तरससे युक्त, हृदयको । ज्वरमें हितकारी रस । हितकारी, रुचिवर्द्धक यूष देने चाहिये, जि- | कारवेल्लकर्कोटवाळमूलकपर्पटैः ॥ ७४ ॥ नमें थोडा नमकभी पडाहो । बार्ताकनिंबकुसुमपटोलफलपल्लवैः। अत्यंतलघुभिर्मासै गलैश्च हिता रसाः ॥ - ज्वरमें रक्तादि चांवल । व्याघ्रीयरूषतर्कारीद्राक्षामलकदाडिमैः । रक्ताद्याः शालयो जी षष्टिकाश्चज्वरेहिता संस्कृताःपिप्पलीशूटीधान्यजीरकसैंधवैः॥ अर्थ-रक्त, महान, सकलमआदि पुराने । अर्थ-करेला, कर्कोट, कच्चीमली, पित्त चांबल, और साठीचांवल ज्वरमें हितहैं। । | पापडा, बेंगन, नीमके फूल, परवल,अत्यन्त कफाधिक्यज्वर में पथ्य । लघु मांस वा जांगल जीवों का मांसरस श्लेष्मोत्तरे वीततुषास्तथा वाट्यकृता यवाः॥ ज्वर में हितकारी होता है । तथा कटेरी, ___ अर्थ-कफाधिक्यज्वर में निस्तुष जौ। | फालसा, तोरी, दाख, आमला, अनार भूनकर दलेहुए हितकारी होते हैं । इनके काथ में पीपल, सोंठ, धनियां, जीरा ___ज्वरीको ओदनविधि । और सेंधानमक डालकर सिद्ध कियाहुआ ओदनस्तैः श्रुतो द्विस्त्रिः प्रयोक्तव्यो यथायथम् रस हितकारी होता है। दोषदृष्यादिबलतो ज्वरघनकाथसाधितः॥ अर्थ-पूर्वोक्त रक्तशाल्यादि चांवलों का अवस्था विशेषमें सितामधुयुक्त रस । सितामधुभ्यां प्रायेण संयुतावा कृताकृताः । भात जो ज्वरोगी जिसके योग्य हो उसे देना हितकारी है । चांवलों को दो तीनवार । है "मुद्गः शिंविधान्यानां पथ्यत्वे श्रेष्ठ तम इति" धोकर फिर पकाना चाहिये । तथा वातादि शंका मुद्गादि कहने से कुलथी का दोष और रसादि दृष्य इनके अनुसार ज्वर ग्रहण है, क्यों कि कुलथी मुद्गादि के अंतनाशक द्रव्योंके क्वाथमें चांवलों को पकाना र्गत है, फिर कुलथी का पृथकू निर्देश क्यों है । उत्तर-ज्वर विषय में कुलथीका चाहिये । प्रयोग बहुत कम किया जाता है, यही .. ज्वरनाशक यूष । वात दिखलाने के लिये इसका पृथक् मुद्गायैलघुर्मियूषाः कुलत्थैश्च ज्वरापहाः । निर्देश किया गया है, फुलथी में ये गुणहैं अर्थ-मुद्गादि x ( मूंग, उरद, चना, | "ऊष्मा कुलत्थाः पाकेम्लाः शुक्राश्मश्वास कुलथी, मोठ और मसर ) हलके अर्थात् पीनसान् । कासार्शः कफवातांश्च नंति · सुखपूर्वक पचनेवाले द्रव्यों के यूष, तथा | पित्तास्नदाः परम्" इसलिये कुलथी के उष्णत्व, अम्लविपाकित्व, और अति रक्त कुलथी का यूष ज्वरनाशक होता है । पित्तकारित्व गुणों के कारण अधिक मात्रा x मूंगका प्रयोग सब से पहिले किया | में प्रयुक्त किया हुआ कुलथी का यूष ज्वर गया है, इसका यह सारांश है कि जिन की शांति नहीं करता है, किंतु उसे बढाता व्याधियों में यूष दिया जाता है उनमें मूंग | है, क्योंकि पित्तका विरोधी है, इसलिये का यूष ही देना चाहिये क्योंकि यह अ- अल्पमात्रा में दिया हुआ यूष कफको शमन त्यत पथ्य होता है, चरक मुनिने भी कहा | करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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