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अ० १
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
(४६१)
अर्थ-अवस्थाविशेष में न कि सब जगह | अभ्यास हो उसी समय में देश और सामांसयूष में मिश्री और शहद डाला जाता त्म्य के अनुसार सज्वर वा ज्वरमुक्त रोगी है । ये यूष दो प्रकार के होते हैं, कृता को भोजन कराना चाहिये, क्योंकि उस
और अकृता । दाडिम, जीरा, सोंठ आदि | समय उसको क्षुधा का उदय होता है । डालकर सिद्ध किये हुए संस्कृत यूष होते । अतएव जिसका भोजनोचित काल पूर्वान्ह हैं । इनसे विपरीत अकृत और असंस्कृत है, उसको पूर्वान्ह में भोजन करने से भी कहलाते हैं।
| अजीर्ण नहीं होता है, यद्यपि उस समय रुचिकर व्यंजन । अग्नि मंद रहती हैं। अनम्लतक्रसिद्धानि रुच्यानिध्यंजनानि च ॥ घृतपान का काल। अच्छान्यनलसंपन्नानि
कषायपानपथ्याग्नेर्दशाह इति लांघते । अर्थ-मीठे तक में पकाये हुए, भोजन | सर्दिद्यात्कफे मंदे बातपित्तोत्तरे ज्वरे ॥ रुचि बढानेवाले, अच्छ और अग्नि पक्क पक्केषु दोषेष्वमृतं तद्विषोपममन्यथा। . व्यंजन के साथ ओदन खाना चाहिये।
| दशाहे स्यादतीतेऽपि ज्वरोपद्रुववृद्धिकृत् ॥
लंघनादिक्रमं तत्र कुर्यादाकफसंक्षयात्। घर में अनुपान । अनुपानेऽपि योजयेत् ।
। अर्थ-पूर्वोक्त मुस्तापर्पटकादि के काथ तानि कथितशीत च वारि मद्यं च सात्म्यतः | का पान तथा पेया यूषादि हलके अन्न ___ अर्थ-भोजन करने के पीछे ऊपर कहे ! का भोजन, इस क्रम से जब दस दिन हुए संपूर्ण व्यंजन, औटाया हुआ ठंडा जल, वीतजाय और कफ क्षीणप्राय होजायतब वात
और मद्य सात्म्य के अनुसार अनुपान में पित्ताधिक्य ज्वर में यथोपयुक्त औषधों से प्रयोग करे ।
सिद्ध किया हुआ घृतपान करावे । दोषके __वर में भोजनकाल ।
परिपाक होने पर घृत अमृत के तुल्य है सज्वरं ज्वरमुक्तं वा दिनांते भोजयेल्लघु ॥ । और यदि दोष परिपाक को प्राप्त न हुआ श्लेष्मक्षयविवृद्धोष्मा बलवाननलस्तदा ॥ हो और कफकी अधिकता हो तो घृतपान अर्थ-सज्वर वा ज्वरमुक्त रोगी को दिन
विषके समान होता है । दस दिन वीतने के अंत में हलका भोजन करावै, क्योंकि
पर भी जो आमदोषका परिपाक न हुआ दिनांत में कफके क्षीण होने से जठराग्नि
हो तो भूलकर भी घृतपान न करावै । की ऊष्मा बढकर बलवान होजाती है और ।
| आमावस्था में घृतपान करने से ज्वरकी भोजन को पचा सकती है।
| तथा उसके उपद्रवों की वृद्धि होती है। इस यथोचितकाल में भोजन । यथोचितेऽथवा काले देशसात्म्यानुराधतः |
लिये कफके क्षीण होने तक आमावस्था में प्रागल्पवर्भुिजानो न ह्यजीर्णेन पीड्यते ॥ | लंघनादि क्रम का अवलंबन करना चाहिये
अर्थ-अथवा यथोचितकाल में अर्थात् | जीर्णज्वर की अनुवति । जिसको जिस समय भोजन करने का देहधात्ववलत्वाच्च ज्वरो जीर्णोऽनुवर्तते ।
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