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अ०१६
निदानस्थान भाषाकासमेत ।
[४४५]
सामनिराम वायुका लक्षण ।
रक्तावृत वायु। सर्वच मारुतं सामं तंद्रास्तमित्यगौरवैः। रक्तावृते सदाहातिस्त्वश्मांसांतरजाभृशम्। स्निग्धत्वारोचकालस्यशैत्यशोकानिहानिभिः भवेच्च रागी श्वयथुर्जायते मंडलानि च। कटुसमाभिलाषेण तद्विधोपशयेन च।।
। अर्थ - रक्तावृत वायुमें त्यचा और मांसके युक्तं विद्यानिरामं तु तंद्रादीनां बिपर्ययात् । अर्थ-तंद्रा,स्तिमिता, गुरुता, स्निग्धता,
| बीचमें दाहयुक्त अधिक वेदना, लाल रंगकी अरुचि, आलस्य, शैत्य, शोथ, अग्निमांद्य,
सूजन और देहमें गोलचकत्ते हो जाते हैं। कटु, और रूक्ष पदार्थों की अभिलाषा और
मांसावृत वायु। वैसेही उपशय इनसव लक्षणोंसे युक्त सब
मांसन कठिनः शोको विवर्णः पिटिकास्तथा
हर्षः पिपीलिकानां च संचार इव जायते । प्रकार के वायुको साम अर्थात् आमसहित
अर्थ-मांसाकृत वायुमें कठोर और बुरे कहते हैं । जिसमें उक्त लक्षणों के विपरीत
रंगकी सूजन, पुंसियां, रोमहर्ष और देहमें लक्षण होते हैं वह निराम कहलाती है। चींटियों कासा चलना मालूम होता है । . वायुके आवरणका वर्णन ।
मेदसावृत वायु। वायोरावरणं चातो बहुभेदं प्रवक्ष्यते।।
चल स्निग्धोमृदुःशीतः शोफोगात्रेवरोचकः अर्थ-सामनिराम लक्षण कहकर अब आल्यबात इति शेयः स कृच्छ्रो मेदसाऽऽवृते वायुके आवरण और भेदोंका वर्णन करतेहैं। अर्थ-मेद से आवृत वायुमें देहमें च
पित्तावरण के लक्षण लायमान, स्निग्ध, कोमल और शीतल सुलिगं पित्तावृते दाहस्तृष्णा शूलं भ्रमस्तमः ।
जन होती है तथा अरुचि भी होती है । कटुकोष्णाम्ललवर्विदाहः शीतकामता । इस व्याधिको आढयवातभी कहते हैं, यह ___ अर्थ-वायुके पित्तसे आवृत होनेपर दाह,
कष्टसाध्य होती है। तृषा, शूल, भूम, और आंखोंके आगे अंधे
अस्थ्यावृत वायु। रा, तथा कटु, उष्ण, अम्ल और लवणरस
स्पर्शमस्थ्यावृतेऽत्युष्णं पीडन चाभिनदति। सेवनमें दाह और शीतल वस्तु की इच्छा। सूच्येव तुद्यतेऽत्यर्थमंग सीदति शूल्यते । ये सब लक्षण उपस्थित होते हैं। ___ अर्थ-अस्थिद्वारा वायुके आवृत होनेपर कफास्त वायु ।
स्पर्श में उष्णता तथा पीडनकी अभिलाषा शैत्यगौरवशूलानि कट्वायुपशयोऽधिकम् । होती है, देहमें सूचीबंधवत दारुण पाडा, लंघनायासरूक्षोष्णकामता च कफावृते। । अंगग्लानि और शूल होता है । ___ अर्थ-बायुके कफसे आबृत होने पर
मज्जावृत वायु। शेरै य, गुरुता, शूल, कटुरसादि सेवन में |
| मजावृते घिनमनं जभण परिवेएनम् ।.३७ । अधिक उपशय, लंघन, परिश्रम, रूक्ष और शुलं च पीड्यमानेन पाणिभ्यां लभतेमुखम् । उष्ण वस्तुकी इच्छा । ये सव उपस्थित अर्थ-वायुके मज्जावृत होने पर भंगों होते हैं।
| का नवजाना, ऐंठन, और शूल होता है,
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