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[ ४४० ]
• अववाद्दुक का लक्षण | असमूलस्थितो वायुः सिराः संकोच्य तत्रगाः बाहुप्रस्पंदितहरं जनयत्ययचा हुकम् ॥४३॥
अर्थ - कंधों के मूल में स्थित हुआ कुपित वायु वहां की सब सिराओं को संकुचित करके बाहुओं की स्पंदन शक्तिको नष्ट कर देता है, इसी से इसे अवाहक रोग कहते हैं ।
विश्वाची का लक्षण ।
तलं प्रत्यंगुलीनां या कंडरा बाहुपृष्ठतः । वाहुचेष्टापहरणी विश्वाची नाम सा स्मृता । अर्थ- बाहुओं के पिछले भागसे जो स्नायुओं का समूह हाथ की उंगलियों तक आता है उसपर वायु आक्रमण करके उसे क्रियाहीन करदेता है । इससे इस रोग को विश्वाची कहते हैं ॥
खंज और पंगु ।
वायुः कट्यां स्थितः सक्न्नः कंडरामाक्षिपदा तदा जो भवेज्जंतुः पंगुः सोर्द्वयोरपि ।
अर्थ - कमर में स्थित कुपित वायु जब ऊरु की कंडरा अर्थात् वडी स्नायु को खींचता है तब मनुष्य लंगडा होजाता है और जब दोनों पावकी कंडराओं को खेचता है तब पंगु होजाता है |
काय खंज ।
कंपते गमनारं खंजेन्निव च याति यः । astri तं विद्यान्मुकसंधिप्रबंधनम् । S - जो मनुष्य चलना आरंभ करने कांपता हुआ खंजन पक्षी की चलने में लंगडाता है
अथवा
मे बंधन ढीले पडजाते हैं, कहते हैं ॥
हृदय ।
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अ० १५
रुस्तंभ का निदान | शीतोष्णाद्रवसंशुष्कगुरुस्निग्धैर्निषेवितैः । जीजी तथाऽऽयाससंक्षोभ स्वप्नजागरैः । सल ममेदपब्रनमाममत्यर्थसंचितम् । सक्थ्यस्थीनि प्रपूर्यातः श्लेष्मण स्तिमितेन तत् अभिभूयेतर दोषमूरू चेत्प्रतिपद्यते ॥ ४८ ॥ तदा स्कन्नाति तेनीरू स्तब्धौ शीतावचेतनौ । परकीयाविव गुरू स्यातामतिभृशव्यथैौ । ध्यानांगमदेस्तैमित्यतंगाच्छर्धरुचिज्वरैः । संयुतौ पादसदनकृच्छ्रोद्धरणसुप्तिमिः । तुमृरुस्तंभमित्याहुराढ्यवातमथापरे ॥ ४९ ॥
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अर्थ- जब भोजन का कुछ भाग पच गया है और कुछ न पचाहो ऐसे जीर्णा - जीर्ण समय में शीतल, उष्ण, गुरु, स्निग्ध इन पदार्थों के सेवन से तथा आयास ( परिश्रम ), संक्षोभ ( देहका इतस्ततः चालन ), दिवानिद्रा और रात्रिजागरण से कफ मेद और वायु से युक्त अत्यंत सं चित हुआ आम अन्य दोष अर्थात् पित्त का पराभव करके ऊरुओं में जा पहुंचता है और स्तिमित कफद्वारा पांवों की अस्थियों को भीतर से भरकर दोनों ऊरुओं को स्तंभित कर देता है । तब ऊरु स्तब्ध, और शीतल हो जाते हैं, इनमें सुई छेदना भी मालूम नही होता है और ऐसे भारी होजाते हैं कि किसी दूसरे के हैं, तीव्र वेदना होने लगती है। इस रोग में दौर्मनस्य, अंगमर्द, स्तिमिता, तंद्रा, वमन, अरुचि, ज्वर, पांवों में शिथिलता, पांवों का कठिनता से |उठाना, स्पर्शका न मालूम होना, ये सब लक्षण उपस्थित होते हैं । इस रोगको ऊरु - स्तंभ अथवा आढवत कहते हैं