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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३६). अष्टांगहृदय । प्र० १५ अर्थ-श्रोत्रादि इन्द्रियों में कुपित वायु अनिद्रा, स्तब्धता और वेदना उत्पन्न इन्द्रियों का नाश करता है । त्वचा में | करता है। प्रविष्ट होकर त्वचा को फाड डालता है शुक्रगत वायु। और रूक्ष करदेता है। शुक्रस्य शीघ्रमुत्सर्ग सङ्गम् विकृतिमेव च । तदर्भस्य शुक्रस्था रक्त के उपद्रव॥ ____अर्थ -शुक्रगत कुपितवायु वीर्य और रक्तेतीबारुजःस्वायं तापं रोगविवर्णताम् । गर्भ का शीघ्र पतन, निबंध और विकृति अरूंप्यनस्य विष्टंभमरुचि कशता भ्रमम् १० अर्थ-जब दूषित वायु रक्त में चला करता है । सिरागत वायु । जाता है तब तीन यंत्रणा, स्पर्श का अज्ञान सिरास्वाध्मानरिक्तते ॥१३॥ ताप, रोग, विवर्णता, अरूपि ( पिटिका ) तत्स्थः अन्नकी विष्टंभता, अरुचि, कृशता और भ्रम । अर्थ-सिरागत वायु सिराओं में आध्मान ये उपद्रव होते हैं। और रिक्तता करता है। . मांसभेदोगत वायु के उपद्रव ॥ स्नायुगत वायु । मांसदोगतो ग्रंथीस्तोदोद्यान कर्कशान्- नावस्थितः कुर्याद्ध्रस्यायामकुजता । _ भ्रमम् ।। अर्थ--स्नायुगत होने पर वायु प्रधूसी, गुर्वगं चातिरुपस्तब्धमुष्टिदंडहतोपमम् ॥ आयाम और कबडापन इन रोगों को - अर्थ-कुपित वायु के मांसगत और | करता है। भेदोगत होने पर तोदादि वेदनायुक्त कर्कश संधिगत वायु । ग्रंथियां होजाती हैं, तथा भ्रम, देहमें भारा वातपूर्णहातिस्पर्श शोफम् संधिगतोऽमिल: पन, अत्यन्त वेदना, स्तब्धता, और लाठी | प्रसारणाऽऽकुंचनयोः प्रवृत्तिं च सवेदनाम् । वा मुष्टिकी चोट के समान आहत होताहै। अर्थ--संधिगत वायु भरी हुई मशक के अस्थिगत वायु ॥ समान सूजन, तथा पसारने और सकोडने अस्थिस्थः सक्थिसध्यस्थिशलं तीनं में वेदना करता है। बलक्षयम्। सर्वांगगत वायु। . अर्थ-अस्थिगत कुपित वायु, सक्थि, | सर्वांगसंश्रयस्तोदभेदस्फुरणभञ्जनम् १५॥ संधि और अस्थि में तीन झूल उत्पन्न करके स्तंभमाक्षेपणं स्वापं संध्याकुंचनकंपनम् । अर्थ--सर्वागगतवायु सूचीवेधवत् पीडा बल को क्षीण करदेता है। भेदन, स्फुरण ( फडकन ) भंजन, स्तब्धता मज्जागत वायु। आक्षेप, स्पर्श का अज्ञान, संधि का आमज्जस्थोऽस्थिषु सौषियमस्वप्नम् कुंचन और कंपन करता है। स्तब्धतां रुजम् ॥ १२॥ धमनीगत वायु । अर्थ-मज्जागत वायु अस्थियों में छिद्र, यदा तु धमनीः सर्वाः कुद्धोऽभ्येति For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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