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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अ०१५ www. kobatirth.org निदानस्थान भाषाटीकासमेत । मुहुर्मुहुः ॥ १६ ॥ तदांगमाक्षिपत्येष व्याधिराक्षेपकः स्मृतः । अर्थ--कुपित वायुं जब संपूर्ण धमनियों में आश्रय कर लेता है तब अंगों को इधर उधर फेंकता है । बार बार अंगों का आक्षेप करने से इस ब्याधि को आक्षेपक कहते हैं । अपतंत्र वायु के लक्षण | अधः प्रतिहतो वायुर्व्रजत्यूर्ध्व हृदाश्रितः १७ नाडीः प्रविश्य हृदयं शिरः शखीच पीडयन् आक्षिपेत्परितो गात्रं धनुर्वच्चास्य नामयेत् ॥ कृच्छ्रादुच्छ्रवसिति स्तब्धस्रस्तमीलितदृक्ततः । कपोत इव कूजेत्स निःसंशः सोऽपतंत्रकः ॥ स एव चापतानाख्यो मुक्ते तु मरुता हृदि । अनुवीत मुद्दुः स्वास्थ्यं मुहुरस्वास्थ्यमावृते अर्थ - नीचे से प्रतिहत ( ताडित ) वायु कुपित होकर ऊपरको चढता है और हृदयस्थित धमनियों में प्रविष्ट होकर हृदय, सिर और कनपटियों को पीडित करता हुआ चारों ओर से शरीर को आक्षिप्त करता है और धनुष की तरह झुका देता हैं | इसमें रोगी अति कठिनता से श्वास लेता है, आंखें पथरा जाती हैं, और उनमें शिथिलता होजाती है, तथा रोगी आंखों को वन्द करता है, फिर कंठमें कबूतर की सी कूंजन है|ते २ बेहोश हो जाता है | इस व्याधिको अपतंत्रक और अपतानक इन दो नामोंसे वोलते हैं । इस रोग में कुपित वायु जब हृदयको छोडदेता है तब रोगी सुस्थ हो जाता है और जव हृदयपर आक्रमण करता है तव असुस्थ होजाता है | इसतरह रोगी वार बार सुस्थ और अस्थ होता रहता है || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४३ अपतानक की उत्पत्ति । अभिघातसमुत्थश्च दुश्चिकित्स्यतमो हि सः गर्भपातसमुत्पन्नः शोणितातिस्रवोत्थितः । अर्थ - अकालमें गर्भपात, अतिशय रक्तara और अभिघात इन तीन कारणों से अपतानक रोग उत्पन्न होता है, इनमें से गर्भपात से जो स्त्रियोंको होता है वह दुश्चिकित्स्य है और रक्तातिस्राव से जो स्त्री पुरुष दोनों के होता है वह दुश्चिकित्स्यतर है और अभिघात से भी दोनों के होता है यह दुश्चिकित्स्यतम है । अंतरायाम के लक्षण । मन्ये संस्तभ्य वार्ता ऽतरायच्छन् धमनीर्यदा व्याप्नोति सकलं देहं जत्रुरायम्यते तदा ॥ अतर्धनुरिवांगं च येगैः स्तम्भं च नेत्रयोः । करोति जृंभां दशनं दशनानां कफोद्वमम् २३ पार्श्वयोर्वेदनां वाक्यहनु पृष्ठशिरोग्रहम् । अंतरायाम इत्येष अर्थ - -जब कुपित वायु, ग्रीवा और पापूर्व में स्थित मन्या नामवाली दोनों सिराओं को जकड कर, और संपूर्ण धमनियों का आश्रय लेकर संपूर्ण देहमें फैलती है तब गर्दन के जोते टेढे पडजाते हैं और शरीर भीतर की ओर धनुषकी तरह झुकजाता है। रोगी के नेत्र स्तंभित होजाते हैं, जंभाई लेने लगता है, दांतों को चबा जाता है, कफकी वमन होती है, दोनों पसलियों में वेदना होती है, वाणी रुकजाती है, हनु पृष्ठ और मस्तक नकड जाते हैं, ये सब लक्षण उपस्थित हो ते हैं । इसको अंतरायाम कहते हैं | वहिरायाम के लक्षण | बाह्यायामश्च तद्विधः ॥ २४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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