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(४२)
अष्टांगहृदये।
अ०५
- अर्थ- दूधमें निकाला हुआ माखन सं- किलाटादि के गुण । माही, रक्तपित्तरोगनाशक तथा नेत्ररोगोंका ! बल्याः किलाटपीयूषकर्चिकामोरणादयः । जीतनेवाला है।
शुक्रनिद्राकफकरा विष्टंभिगुरुदोषलाः॥४२॥ घृत के गुण !
- अर्थ-किलाट, पीयूष, कार्चका और शस्तं धीस्मृतिमेधाग्निबलायुःशुक्रचक्षुषाम्। मोरटादि दूध के विकार बलकारक तथा बालवृद्धप्रजाकांतिसौकुमार्यस्वरार्थिनाम् ॥ वीर्य, निद्रा और कफको बढाने वाले हैं । क्षतक्षीणपरीसर्पशस्त्राग्निग्लपितात्मनाम् ।।
विष्टंभी भारी और दोषों को उत्पन्न करने घातपित्तविषोन्मादशोषाऽलक्ष्मीज्वरापहम् नेहानामुत्तमं शीतं वयसः स्थापनं परम् ।
वाले हैं । किलाटादि के लक्षण चरकसुश्रुसहस्रवीर्य विधिभिघृतं कर्मसहस्रछत् ४०॥ तादि प्रन्थों में विस्तार पूर्वक लिखे हैं । ___ अर्थ-घृत बुद्धि, स्मरणशक्ति, मधा, गौके दूधको उत्कृष्टता। अग्नि, बल, आयु, वीर्य और नेत्र | गठये क्षीरघृते श्रेष्ठ निंदिते चाविसंभवे । पक्ष में हितकारी है । बालक, वृद्ध, संता- अर्थ-गौका घी और दूध श्रेष्ट होते हैं नाभिलाषी, तथा कान्ति, सुकुमारता, और और भेड़ के घी और दूध निन्दित हैं । स्वर के अभिलाषी को हितकारी है । क्षत
इक्षुके गुण । क्षीण, परीसर्प, शस्त्र और अग्नि से पीडित,
इमो रसो गुरुः स्निग्धो बृहणः कफमूत्
| वृष्यः शीतोऽस्रपित्तघ्नः स्वादुपाकरसः सरः के लिये भी हितकारक है । बातपित्त,विष
सोऽग्रेसलवणोदंतपीडितः शर्करासमः ४४ उन्माद, शोष, अलक्ष्मी और ज्वर इनका
___ अर्थ-ईखका रस भारी, स्निग्ध, बलदूर करनेवाला है । सब प्रकार के स्नेह
कारक, कफवर्द्धक, मूत्रकारक, शुक्र वर्द्धक, द्रव्यों में घृत सबसे उत्तम, शीतवीर्य और
शीतळ, रक्त पित्तनाशक,स्वादुपाकी, मधुररस युवावस्था का संस्थापक है । विधिवत् प्र
युक्त, और दस्तावर होताहै । इसके अग्र युक्त किये जाने पर घृत अनेक प्रकार के
भागका रस लवण रसयुक्त होताहै । दाबल वीर्य और अनेक प्रकार के कर्म करने
तसे चवाये हुए ईखका रस शर्कराके सवाला हैं ।
मान मिष्ट होताहै। - पुराने घृत के गुण । मदापस्मारमूर्छायशिरःकर्णाक्षियोनिजान् ॥
अन्य गुण । पुराणं जयतिव्याधीन् व्रणशोधनरापेणम् ॥ मूलाग्रजंतुजग्धादिपीडनान्मलसंकरात् । __ अर्थ-पुराना घृत, मदरोग, अपस्मार, किंचित्कालं विधृत्या च विकृति यातियांत्रिकः मुर्छा, शिरोरोग, कर्णरोग, नेत्ररोग, और
| विदाही गुरुविष्टंभी तेनासौ
तत्र पौडूकः। योनिरोगों को नाश करता है । यह व्रण शैत्यप्रसादमाधुर्यैर्वरस्तमनुवांशिकः ॥४६॥ को शुद्ध करता है और उनका रोपण करने अर्थ-ईखकी जड़, अग्रभाग और कीवाला है।
| डेसे खाया हुआ भाग एक साथ यंत्र (को
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