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अ० २९
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत।
(२४१)
हिथे।
कोश, स्वस्तिक, उत्तोली, चीन, दाम, अनु- पित्तरकोत्थ घावों में बंधन । वेल्लित, खवा, विवंध, स्थगिका, वितान पित्तरकोत्थयोधो गाढस्थाने समोमतः ।। उत्संग, गोफण, यमक, मंडल और पंचांगी समस्थानेश्लथो नैव शिथिलस्याशये यथा॥ इन में से जो जिस स्थान पर बांधने के
| सायंप्रातस्तयोमोक्षोग्रीष्मे शरदिचेष्यते । योग्य हो उसे उसी स्थान पर बांधना चा
___ अर्थ-पित्तरक्त से उत्पन्न हुए घावों में
गाढ बंधन के योग्य स्थान में दृढ बंधन न बंधनों का गाढा वा ढीला बांधना।
बांधकर सनबंधन बांधे । और समबंधन के बन्नीयादगाढमूरुस्किकक्षावंक्षणमूर्धसु।
योग्य स्थानमें ढीला बंधन बांधे तथा शिशाखावदनकोर:पृष्ठपार्श्वगलोदरे ॥ ६२ ॥
थिल बंधन के योग्य स्थान को दिन में सम मेहनमुष्केच
. एकबार बांधे वा खुलाही रहने दे । पित्तरक्त
नेत्रे संधिषु च श्लथम् । से उत्पन्न हुए घावकी पट्टी प्रातःकाल और बनीयाच्छिथिलस्थाने वातश्लेष्मोद्भवेसमम्॥ सायंकाल दोनों समय खोले । गाढमेव समस्थाने भृशंगाढ तदाश्रये। शीते वसंतेच तथा मोक्षणीयौ व्यहाध्यहात पट्टी न बांधने का फल । .
अर्थ-ऊरु, स्किक, कक्षा, वंक्षण और अबद्धो दंशमशकशीतवातादिपीडितः।६६ । मूर्दा में गाढ अर्थात् कसकर बांधना चाहिये
| दुष्टो भवेच्चिरं चाऽत्र नतिष्ठेत्स्नेहभषेजम् ॥ हाथ पांव, मुख, कान, वक्षस्थल. पीठ | कृच्छ्रेण शुद्धि दि वायाति रूढो विवर्णताम् पसली, गला, उदर, मेढ़ और मुष्क इनके
अर्थ-जो घाव पर पट्टी न बांधी जाय घावों में सम वंधन अर्थात् न बहुत कसा
तो दंश, मशक ( मच्छर ) मक्खी, शीत, हुआ न ढीला बंधन लगाबै । नेत्र और
हवा, धूल, धुंआ आदि के लगने से अच्छा संधि के घावोंमें ढीला बंधन बांधे । जहां
घाव भी बिगड जाता है उस पर घावको ढीले स्थानोंमें ढीले बंधनोंका वर्णन है । वहां
अच्छा करनेवाली दवा वा कोई तेल आदि यदि वात वा कफ से उत्पन्न हुए घाव हों
देरतक नहीं ठहर सकते हैं। बिना बांधा तो समभाव में अर्थात् न डीले, न कसेहुए
हुआ घावं अच्छी तरह चिकित्सा किये जाने बांधे । जहां समबंधन के लिये कहा गयाहै
पर भी बडे प्रयास से शुद्ध होता है, फिर वहां यदि वात और कफ से उत्पन्न घाब | बडी कठिनता से पुरता है, और पुर भी हों तो दृढ बंधन बांधना चाहिये । और । जाता है तो उसकी खाल का रंग देह के गाढ बंधन वाले स्थानों में उक्त प्रकार के के सदृश नहीं होता है । घाव हों तो दृढतर बंधन बांधै ।
बंधन के गुण । ये बंधन हेमन्त, शिशिर और वसंत ऋतुओं में तीन तीन दिनका अंतर देकर खोलने ।
| बद्धस्तु चूर्णितो भग्नोविश्लिष्टःपाटतोऽपिवा
र खालन | छिन्नस्नायुसिरोऽप्याशुसुखं सरोहति व्रणः॥ चाहिये।
उत्थानशयनाद्यासुसर्वेहासुन पीडयेत् ।
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