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(३३०)
अष्टांगहृदप ।
ह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र ) इनके सजा- 1 हो तो वैद्यको उचित है कि ऐसे दूत के तीय दूतही कर्भ की सिद्धि के निमित्त कहे | साथ न जाय । गये हैं और जो विजातीय दूत होते हैं वे वैद्यके लक्षणों से मृत्युकी सूचना । कर्म की विपत्ति अर्थात् कार्यहानि की सूचना अशस्तचिंतावचने नग्ने छिदति भिंदति ५॥ करते हैं, जैसे पावंड का दत पाखंड, जुह्वाने पावकंपिंडान् पितृभ्यो निर्वपत्यपि। ब्राह्मण का ब्राह्मण, ब्रह्मचारी का ब्रह्मचारी, सुप्ते मुक्तकचेऽभ्यक्ते रुदत्यप्रयते तथा ६ ॥ भिक्षुक का भिक्षु और शूद्र का शूद्र होतो
| वैद्ये दूता मनुष्याणामागच्छंत मुमूर्षताम् । शुभसूचक है, यदि ब्राह्मण का दूत शूद्रहो
___अर्थ-जब वैद्य किसी अशुभविचार को
कर रहा हो, वा अशुभ वाक्य कहरहा हो । और शूद्रका क्षत्री हो ये सब विजातीय
नंगा बैठा हो, किसी वस्तुको काट रहा हो अशुभ सूचक हैं। निषिदतों का वर्णन ॥
वा छेदन कर रहा हो, अग्नि में आहुति दीनं भीतं द्रुतं त्रस्तं रूक्षामंगलवादिनम् ।।
डाल रहा हो, पित्रीश्वरों को पिंडदान कर शत्रिणं दंडिनं खंड मुंडश्मश्रु जटाधरम् २॥
रहा हो, सो रहा हो, बाल खोले बैठा हो,तेल अंमंगलाहवयं करकर्माण मलिनं स्त्रियम् २॥ लगा रहाहो. रुदन्करताहो चिकित्साके विचार अनेकव्याधितं व्यंग रक्तमाल्यनुलेपनम् । में दत्तचित्त न हो, ऐसी दशा में स्थित वैद्य तैलपंकांकितं जाणविवर्णाकवाससम् ।।
के पास उन्हीं मनुष्यों के दूत आते हैं जो खरोष्ट्रमाहिषारूढम् काष्ठलाष्टादिमर्दिनम् ॥
मरने को होते हैं। नानुगच्छद्भिषग्दूतमाह्वयंतंच दूरतः। ।
। देश विशेष से दूत विचार ॥ अर्थ-वैद्यको बुलाने के लिये जो समा- विकारसामान्यगुणे देशे कालेऽथवा भिषक् नजाति वाला दूत भी भेजा जाय और वह दूतमभ्यागतंदृष्ट्वा नातुरंतमुपाचरेत् । दैन्ययुक्त, डराहुआ, बेगसे आया हुआ,डरा । अर्थ-विकार के समान गुणवाले देश हुआ, कर्कश और अमंगलवादी, शस्त्रधारी | वा काल में दूत को आया हुआ देखकर दंडपाणि, नपुंसक, मुंछ डाढी मुडा हुआ | वैद्यको उचित हो कि उस रोगी की चिकिजटाधारी, अशुभनामधारी, क्रूरकर्मकरनेवाला त्सा न करै । जैसे कफवर में घृत जल मलीन, स्त्री, अनेक रोगों से प्रस्त, हीनांग वा द्रव पदार्थ के समीपवाले स्थानमें वा लाल फूलों की माला पहने हुए, लालचंदन | अनूप देश में प्रातःकाल के समय दूत का लगाये हुए, शरीर में तेल और कीचड़ आना अशुभ है । पित्तरोगैमें अग्नि आदि लपेटे हुए, जीर्ण, विवर्ण और गीला वस्त्र से संतप्त स्थान में वा मध्यान्ह के समय पहने हुए, गधा ऊंट वा भंसा पर सवार | आया हुआ दूत अशुभ होता है । इसी काठ और लोहे का मर्दन करता हुआ और | तरह वातरोगमें परुष, रूक्ष, बालुका, पाषाण दूर से बुलानेवाला, इन लक्षणों से युक्त ! और कंकरों से युक्त देश में सायंकाल के
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