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निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
अर्थ - छिन्न श्वास में रोगी रुक रुककर छिन्न भिन्न श्वास लेता है, इसमें मर्म छेदन की सी पीडा होती है, पसीना, मूर्छा, आनाह, वस्तिमेंदाह और निरोध, अधोदृष्टि, नेत्रों में चंचलता, मोह और एक आंख में ललाई होती है मुख सूख जाता है, प्रलाप करता है, कांति जाती रहती है और सावधानी नष्ट होजाती है ।
महाश्वास के लक्षण |
महता महतादीनो नादेन श्वसिति क्रथन् ॥ उद्धूयमानः संरब्धो मत्तर्षभ इवानिशम् । प्रणष्टज्ञानविज्ञानो विभ्रांतनयनाननः १४ ॥ वक्षः समाक्षिपन् बद्धमूत्रवर्चा विशर्णघाक् । शुष्ककण्ठो मुहुर्मुहान् कर्णशंखाशरोतिरुक्
वक्षः
अर्थ -- महा श्वाससे पीडित मनुष्य दीन होकर बडा शब्द करता हुआ वडे बडे श्वास लेता है, और उन्मत्त वैल की तरह संक्षुब्ध होकर कांपता हुआ निरंतर घरघराता हुआ श्वास लेता है, इसका ज्ञान विज्ञान जातारहनेत्र और मुखविभ्रांत होजाते है, -स्थल आक्षिप्त होता है, मलमूत्र रुकजाते हैं, बाणी विशीर्ण होजाती है, कंठ सूख जाता है वार वार मोहको प्राप्त होता है और उस के कान, कनपटी और सिरमें वडी वेदना होती है । ये महाश्वास के लक्षण हैं । उर्ध्व श्वास के लक्षण | दीर्घमूर्ध्व श्वसित्यूर्ध्वान्न च प्रत्याहरत्यधः । श्लेष्मावृत्तमुखस्रोताः क्रुद्धगन्धवहार्दितः ॥ ऊर्ध्वग्वीक्षते भ्रांतमक्षिणी परितः क्षिपन् । मर्मसु च्छिद्यमानेषु परिदेवी निरुद्धवाकू
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अर्थ - इस रोग में रोगी दीर्घ और ऊर्ध्व श्वास लेता है, दीर्घश्वास को छोटकर
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अधःश्वास को फिर नहीं लेता, जैसा कि अन्य श्वासों में किया जाता है । इसरोग में स्रोतों के मुखको कफ आच्छादित कर लेता है, कुपितवायु से पीडित करता है दृष्टि ऊपर को होजाती है, आंखें विभ्रांत होकर चारों ओर को देखती हैं मर्मछेदने की सी वेदना होती है, और वाणी रुक जाती है ।
श्वास का साध्यासाध्यत्व । एते सिद्धयेयुरव्यक्ता व्यक्ताः प्राणहरा ध्रुवम् अर्थ - इन तमकादि पांच प्रकार के श्वासों के लक्षण जब तक प्रकट नहीं होते हैं ये साध्य होते हैं, तथा स्फुट लक्षण होने पर असाध्य होजाते हैं ।
हिध्मा का स्वरूप / श्वासैकहेतुप्राग्रूपसंख्या प्रकृतिसंश्रयाः १८॥ हिध्मा भक्तोद्भवा क्षुद्रा यमला महतीति च । गंभीरा च
अर्थ- श्वास रोग के जो जो निदान, पूर्वरूप, संख्या, प्रकृति और आश्रय स्थान. कहे गये है वेही हिध्मा के भी होते हैं ।
भक्तोद्भवा ( अन्नजा ), क्षुद्रा, यमला, महती और गंभीरा, इन पांच प्रकार की हिक्का होती है ।
भक्तोद्भवा के लक्षण |
मरुत्तत्र त्वरया युक्तिसेवितैः ॥ १८ ॥ रूक्षतीक्ष्णखरासात्म्यैरन्नपानैः प्रपीडितः । करोति हिध्मामरुजां मन्दशब्दां क्षवानुगाम् शमं सात्म्यान्नपानेन या प्रयाति च साऽन्नजा
अर्थ - रूक्ष, तीक्ष्ण, खर और असात्म्य अन्नपान के अयुक्तिपूर्वक सेवन करने पर वायु प्रपीडित होकर अन्नजा नामवाली
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