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अष्टांगहृदय |
[ ४९६ )
कच्छर्णिमांसश्च स्पृष्टस्नायुसिंरागणः । अवधिश्च वीसर्प कर्दमाख्यमुशंति तम् ।
आ
अर्थ-कफपित्त से कईमनामक विसर्प होता है, इसमें ज्वर, स्तंभता, निद्रा, तंद्रा शिरोवेदना, अंगर्मे शिथिलता, विक्षेप, पलाप अरोचक, भ्रम, मूर्च्छा, अग्निमांद्य, अस्थिभेद, पिपासा, कर्मेन्द्रियों में भारापन, मोपवेशन ( आमके दस्त, स्रोतों में रिहसावट, ये सब लक्षण उपस्थित होते हैं । यह आमाशय के एक देशमें उत्पन्न होकर अन्य भागोंमें फैलता चला जाता है परंतु इसमें दर्द नहीं होता है । तथा अत्यन्त पीली लोहितवर्ण और पांडुवर्ण की पिटकाओं से व्याप्त हो जाता है । इसका रंग मोरके कंठ के दृश होता है, तथा काला, चिकना, मलीन, शोफयुक्त, भारी, गंभीरपाकी, छूने में अत्यन्त गरम, क्लिन्न, विदीर्ण, कीचकी तरह शीर्णमांस, मुर्दे के समान दुर्गंधित होता है, इसमें स्नायु और सिराओं के समूह दिखाई देने लगते हैं । इसको कर्बमविसर्प कहते हैं ।
सन्निपातजविसर्प |
सर्वजेा लक्षणैः सर्वैः सर्वधात्वतिसर्पणः । अर्थ- सन्निपातज बिसर्वमें तीनों दोषों के मिले हुए लक्षण पाये जाते हैं यह संपूर्ण धातुओं में फैलता है।
विसर्प के कारण ।
बाह्यहेतोः क्षतात्कुद्धः सरक्तम्
पित्तमीरयन् ॥ ६५ ॥ बिसर्पे मारुत् कुर्यातः कुलत्थसदृशैश्वितम् । स्फोटैः शोफज्वररुजादाहाढ्यम्श्यावलोहितम् ॥ ६६ ॥
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अ० १३
अर्थ बाहर के हेतुओं से अर्थात् लाठी तलवार आदि की चोटसे वा किसी हिंसक जीवके नख वा दांत लगने से जो घाव होजाता है इस घाव के कारण कुपित हुआ वायु रक्तसहित पित्तको प्रेरित करके कुल्थी के सदृश फुंसियोंसे व्याप्त विसर्परोग को उत्पन्न कर देता है, इसमें सूजन, ज्वर, बेदना और दाह अधिक होता है, तथा रंगभी श्याव और लोहितवर्ण होता है ।
बिसपों का साध्यासाध्य विचार | पृथग्दोषैस्त्रयः साध्या द्वन्द्वजाश्चानुपद्रवाः । असाध्यौ क्षतसर्वोत्थौ सर्वे चाक्रांतमर्मकाः शीर्णस्नायुसिरामांसाः प्रक्लिन्नाः, शवगन्धयः अर्थ-कफ वात पित्त इन तीनों पृथक् पृथक् दोपों से उत्पन्न हुए विसर्प साध्य होते हैं । कासवैवर्ण्यज्वरादि उपद्रव्यों से रहित तीनों प्रकार के द्वंद्वज विसर्प भी साध्य होते हैं । क्षतज और सान्निपातिक ये दो विसर्प असाध्य होत हैं । तथा हृदयादि मर्मों पर आक्रमण करनेवाले सब प्रकार के विसर्प असाध्य होते हैं वे विसर्प जिन में स्नायु, सिरा और मांस गलगये हैं तथा बेजिनमें अत्यन्त क्लिन्नता और मुर्दे की सी गंध हो वेभी असाध्य होते हैं । इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीकार्यां निदानस्थाने पांडुकामलाशोफ विसर्पानिदानं नाम त्रयोदशो ऽध्यायः ।
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