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निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
अ० ४
यो वा बलिनां तद्वत् क्षतजोऽभिनवौतु तौ ॥ ३६ ॥
सिध्येतामपि सानाथ्यात्
अर्थ - उपरोक्त लक्षणों से युक्त क्षयज और क्षतज कास क्षीण रोगीकी देहका नाश कर देती है और यदि रोगी बलवान् हो तो ये दोनों प्रकार की खांसी याप्य होजाती है । यदि ये दोनों प्रकारकी खांसी नई हों और चिकित्सा के चारपाद से युक्त रोगी हो तो अच्छी भी हो जाती हैं। अर्थात् भाग्यवश से अच्छा वैद्य, उपयुक्त औषध, अनुकूल परिचारक और रोगी भी विवेकी हो तो रोग साध्य होजाता है ।
अन्य खासियों का साध्यासाध्य | साध्या दोषैः पृथक् त्रयः । मिश्रा यायाद्वयात्सर्वे जरसा स्थविरस्यच अर्थ - वात, पित्त और कफ इन तीनों से पृथक् पृथक् उत्पन्न खांसी, साध्य होती है । तथा दो दो दोषों के संसर्ग से उत्पन्न हुई खांसी और वृद्ध मनुष्यों की खांसी याप्य होती है ।
कासरोग में शीघ्रता । कासाछ्वासक्षयच्छर्दिस्वरसादादयो गदाः भवॆत्युपेक्षया यस्मात्तस्मात्तं त्वरया जयेत्” अर्थ - कास रोग में चिकित्साकी उपेक्षा करने से श्वास, क्षय, वमन, स्वरभंगादि पीनस और यक्ष्माके निदान में कहे हुए उपद्रव उत्पन्न होजाते हैं, इसलिये कास रोग की चिकित्सा करने में बहुत शीघ्रता करना चाहिये ।
इति तृतीयोऽध्यायः ।
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चतुर्थोऽध्यायः ।
अथाऽतः श्वासहिध्मानिदानं व्याख्यास्यामः अर्थ- अब हम यहांसे श्वासहिध्मा निदान नामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे ।
श्वासके निदानादि ।
'कासवृद्धय भवेच्छ्वासः पूर्वैर्वा दोष कोपनः आमातिसारखमथुर्विषपांडुज्वरैरपि ॥ १ ॥ रजोधूमानिलैर्मर्मघातादतिहिमांबुना । क्षुद्रकस्तम छनो महानूर्ध्वश्च पञ्चमः २
अर्थ-खांसी की वृद्धि, सर्व रोग निदानाध्याय में कहे हुए कटुतित्तादि वातादि दोषों को प्रकुपित करनेवाले पदार्थों के सेबन से, आमातिसार, वमन, विष, पांडु रोग, ज्वर, रज, धूंआं, वायु, मर्मघात, अति शीतल जल इनके सेवन से श्वास रोग उत्पन्न होजाता है |
श्वास पांच प्रकार का होता है, यथाक्षुद्रश्वास, तमकश्वास, छिन्नश्वास, महाश्वास और ऊर्ध्वश्वास ।
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पंचविध श्वासकी संप्राप्ति । कफोपरुद्ध गमनः पवनो विष्वगास्थितः । प्राणोदकान्नवाहीनि दुष्टः स्रोतांसि दूषयन् उरःस्थः कुरुते श्वासमामाशयसमुद्भवम् ।
अर्थ- सर्वशरीरव्यापी कुपित वायु कफ के द्वारा अपना मार्ग रुकजाने पर प्राणवाही, उदकवाही और अन्नवाही स्रोतोंको दूषित करके वक्षःस्थल में आकर ठहरजाता है और आमाशय से उत्पन्न श्वासरोग को पैदा कर देता है ।