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अष्टांगहृदय ।
अ०११
बेदना होतीहै और कुक्षिमें गुडगुड शब्द | बिद्राधि का साध्यासाध्य विभाग। होताहै। वंक्षण में होनेसे पांव निष्काम हो
तत्र विवयंः सन्निपातजा जातेहैं । वृक्कमें होनेसे कमर, पीठ और पक्को हन्नाभियस्तिस्थो मिनोऽतर्बहिरेव वा
| पकश्चांतःस्रवन्पक्कात् क्षीणस्योपद्रवान्वितः पसली में बेदना होतीहै । गुदनाडी में होनेसे
___अर्थ सन्निपातज विद्रधि असाध्य हीती अधोवायु रुक जाता है ये भिन्न भिन्न स्थानों
है । हृदय, नाभि और वस्तिमें जो विद्रधि के भिन्न भिन्न उपद्रव हैं।
| होती है, वह भीतरवाली पककर भीतर विद्रधि को शोफतुल्यता।
फूटे वा वाहरवाली में शस्त्रद्वारा विदीर्ण आमपक्वविदग्धत्वम् तेषां शोकबदादिशेत् ॥ | करके बाहरको मुख कियाजाय वहभी अ' अर्थ - इनविद्रधियोंका आमत्व ( कच्चा ।
साध्य होती है । तथा हृदय, नाभि, वास्त पन), पक्वत्व ( पक्कापन ), और विदग्धत्व
इन स्थानोंको छोडकर अन्यस्थानोंमें उत्पन्न (पाकातिक्रांतत्व ) शोफ के लक्षणों के
हुई विद्रधि पककर भीतरको फूटे और उ. समान जानना चाहिये।
सका स्राव मुख द्वारा निकले वहभी असा. उत्पत्तिस्थानभेद में विद्गधि ।।
ध्य होती है। माभेरूच मुखात्पक्काःप्रसवंत्यपरे गुदात् । उभाभ्यां नाभिजा
स्त्रियों की स्तनविद्रधि । - अर्थ-जो विद्रधि नाभि के ऊपर वाले । एवमेव स्तनसिरा विवृताः प्राप्य योषिताम्
सूतानांगर्भिणीनांवासभबेच्छवयथुर्घनः ।। स्थानों में होतीहै उनके पककर फूटने परजो ।
स्तने सदुग्धेऽदुग्धे वा वाह्यविद्रधिलक्षणः। पीव निकलती हैं वह रोगीके मुख द्वारा | नाडीनां सूक्ष्मवत्रत्वात्कन्यानां तु न जायते निकलती है और जो विद्रधि नाभिके नीचे अर्थ-प्रसूता वा गर्भिणी स्त्रियोंके दूध के स्थानों में होतीहै उसकी पूय ( राध) | वाले वा विनादूध के स्तनोंमें विद्रधि के उ. गुदा द्वारा निकलतीहै और नाभि में उत्पन्न | त्पन्न करनेवाले हेतुभोंसे एक प्रकारकी सूहोनेवाली विद्रधि की राध दोनों मार्गोसे अन पैदा होजाती है और यह सूजन स्तनों से निकलती है।
की खुलेहुए सुखवाली नसोंमें प्रविष्ट होती विद्रधि में अणके समान द्रोपोंद्रेक ।
है तथा इसके सब लक्षण वाह्य विद्रधि के
समान होते हैं । छोटी बालिकाओं के स्तनों . विद्याहोषम् क्लेदाच्च विद्रधौ ॥ १७ ॥ यथास्वम् व्रणवत्
की नसोंके मुख वहुत सूक्ष्म होते हैं, इस. . अर्थवातादि गुणोंमें क्लेदकी जैसी | लिये उनके स्तनों में विद्रधि उत्पन्न नहीं आकृतिहै, विद्रधि की भी वैसीही आकृति | होती है। होताहै इसलिये क्लेदको देखकर विद्रधि के | बृद्धिरोग का वर्णन । वातादि दोषों के लक्षण समझने चाहिये। क्रुद्धो रुखगतिर्वायुः शोफशलकरश्चरन् ।
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