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अ १३
निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
(४१९)
अर्थ-पांडुरोग पांच प्रकार का होता | दुर्गधि, मुखमें कडवापन, मलभेद, खट्टी है, यथा-वातज, पित्तज, कफज त्रिदोषज डकार और दाह उत्पन्न होते हैं । और मृद्भक्षणज ।
कफज पांडुरोग। पांडुरोग का पूर्वरूप।
कफाच्छुक्लासिरादिता ॥ ११ ॥ प्राग्रूपमस्य हृदयस्पंदनम् रूक्षता त्वाच।। तंद्रा लवणवक्त्रत्वं रोमहर्षः स्वरक्षयः । अरुचिः पीतमूत्रत्वं स्वेदाभावोऽल्पवद्विता | कासछर्दिश्च । सादः श्रमो
___ अर्थ-कफज पांडुरोग में सिरा मुख ___ अर्थ-पांडुरोग के उत्पन्न होनेसे पहिले नेत्रादि सफेद रंग के होजाते हैं, तंद्रा, हृदय का संदन, त्व चाकी रूक्षता, अरुचि, मुख में खारापन, रोमोद्गम, स्वरभंग, खांसी मूत्र में पीलापन, पसीनों का अभाव, अग्नि और वमन, ये सब लक्षण दिखाई देते हैं। की मंदता, देह में शिथिलता और श्रम ये । सांनिपातिज पांडुरोग । सब लक्षण होते हैं।
निचयान्मिश्रलिंगोऽतिदुःसहः । बातज पांडुरोग का लक्षण ।
अर्थ-त्रिदोषज पांडुरोग में तीनों दोषों
के मिले हुए लक्षण दिखाई देते हैं यह बडा अनिलात्तत्र गावरुक्तोदकंपनम् ।
दुःस्सह होता है। कृष्णरुक्षारुणसिरानखविण्मूत्रनेत्रता ९ ॥ शोफानाहास्यवरस्यशोषाः पार्श्वमूर्धरुक् ।।
पांडुरोग के कारणादि। अर्थ-वातज पांडुरोग में शरीरमें वेदना
मृत्कषायानिलं पित्तमूषरामधुराकफम् । सुई छिदने की सी पीडा, कंपन, तथा
दूषयित्वारसादींश्चरौक्ष्याभुक्तं विरुक्ष्यच
स्रोतांस्यपकैवापूर्य कुर्यादुध्वा च पूर्ववत् । सिरा, नख, विष्टा, मूत्र और नेत्र इन में
पांडुरोग ततः शूननाभिपादास्यमेहनः।१४। कालापन, रूखापन और ललाई होती है पुरीषं कृमिमन्मुंद्भिन्नं सासृक्कर्फ नरः। सूजन, आनाह, मुख में विरसता, मल शोष अर्थ-जिस मनुष्य के मिट्टी खानेका अभ्यापाश्चैवेदना और सिर में शूल उत्पन्न । स पड़ जाता है उसके पांडुरोग होता है । होता है।
कसेली मिट्टी वायुको, ऊसरा मिट्टी पित्त . पित्तज पांडुरोग । को, मीठी कफको दूषित करके अपने रूखेपित्तारितपीताभसिरादित्वम् ज्वरस्तमः |
पन से रसादि धातु और भुक्त अन्न को तृट्स्वेदमु शीतेच्छा दौर्गध्य कटुवक्त्रता। भी रूक्षित करके विना पाकको प्राप्त हुए व!भेदोऽम्लको दाहः
ही रसवाही स्रोतों को भरकर उन्हें रोक ___ अर्थ-पित्तज पांडुरोग में सिरा, नख, देती है और पूर्ववत ( पित्तप्रधान कुपिता विष्टा, मूत्र और नेत्र हरे रंग के होजाते हैं | इस रीति से ) पांडुरोग को उत्पन्न कर. तथा ज्वर, आंखों के आगे अंधेरा, तृषा, देती है । तदनंतर नाभि, पांव, मुख और पसीना, मूर्छा, शीतल वस्तु की इच्छा, | मेहनेन्द्रिय में सूजन पैदा होजाती है । और
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