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अ.१३
निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
.(४२३)
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विपज शाफ ।
स्राव होता है । इसमें गरम पदार्थ के छूने | लोहित वर्ण, और प्रायः पित्तन शोफ के की इच्छा रहती है।
लक्षणों से युक्त होती है। बंद्वज शोफ।
विषज शोफ । ___यथास्वम् द्वंद्वजास्त्र्ययः। विषजः सविषप्राणिपरिसर्पणमूत्रणात् । संकराद्धेतुलिङ्गानाम्
दंष्ट्रादन्तनखापातादविषप्राणिनामपि ४०॥ अर्थ-द्वंद्वज शोफों में दो दो दोषों के | विण्मूत्रशुक्रोपहतमळवद्वस्त्रसंकरात् । मिले हुए लक्षण और हेतु होते हैं ऐसे
विषवृक्षानिलस्पर्शाद्दरयोगावचूर्णनात् ४१
मृदुश्चलोऽवलम्बी च शीघ्रो दाहरुजाकरः। शोफ तीन प्रकार के होते हैं, अर्थात् वात
____अर्थ-विषीले जीवों के शरीर पर चलने और पित्तके हेतु और लिंग मिलने से वात.
से, अथवा देह पर मूत्र कर देने से, अथव' पित्तज, वात और कफके हेतु, और लिंग
निर्विष जीवों के डाढ़, दांत, वा नख के मिलने से वातकफज तथा पित्त और
लगने से अथवा मल मूत्र और शुक्र से कफके हेतु और लिंग मिलने से पित्तक
सनेहुए वस्त्र ओढने पहनने से, अथवा फज शोफ होता है।
विषवृक्ष में होकर आई हुई पवन के स्पर्श सान्निपातंज शोफ ।
से, अथवा संयोगज विष मिला हुआ चूर्ण निचयान्निवयात्मकः ॥३७॥ अर्थ-जिस शोफ में तीनों दोषों के
शरीर पर मर्दन करने से जो सूजन पैदा
होती है, उसे बिषज शोफ कहते हैं । यह मिले हुर लक्षण पाये जाते हैं उसे सान्नि
सूजन कोमल, चलायमान, अबलंबी और पातिक शोफ कहते हैं। अभिघातज शोक।
| शीघ्रही दाह, तथा शूट को करनेवाली अभिघातेन शस्त्रादिच्छेदभेदक्षतादिभिः।
होती है । हिमानिलोध्यनिलैर्भल्लातकपिकच्छुजैः ॥
शाफका साध्यासाध्यत्व । रसैः शूकैश्व संस्पर्शाच्छ्वयथु- नवोऽनुपद्रवः शोकः साध्योऽसाध्यः । स्याद्विसर्पवान् ।
पुरेरितः ॥४२॥ भृशोमा लोहिताभासः प्रायशः
अर्थ-नये और उपद्रवरहित शोफ __ अर्थ-शस्त्रादि द्वारा छेदन, भेदन और
साध्य होते हैं, तथा जिन शोफों का वर्णन घाव आदि के उत्पन्न होने पर जो सूजन
विकृतिविज्ञानीयाध्याय में कह चुके हैं वे पैदा होती है उसे अभिवातज शोफ कहते
सब असाध्य होते हैं, जैसे'अनेकोपद्रवयुतः हैं । इसी तरह से ठंडी हवा, सामुद्रीय
पादाभ्यां प्रसृतोनरः । नारी शोफो मुखात् हवा, मिलावे का चेप, और केंचकी फली
हंति कुक्षिगुह्यादुभावपि।
बिसर्प का निदान | . के लगने से जो सूजन होती है, वह
| स्याद्विसर्पोऽभिघातातैर्दोषैर्दू प्यैश्चफैलती चली जाती है। यह अत्यन्त, गरम ।
शाफवत्।
लक्ष
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