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६:३७२)
अष्टांगहृदय ।
अ० ५.
अर्थ-कुपित बायु नामि पीठ और दोनों देते हैं, तथा विकृत विज्ञानीयाध्यायमें छर्दि पसली में वेदना करती हुई भोजन किये के रिष्ठके प्रकरण में कही हुई सर्व लक्षणों हुए पदार्थ को ऊपर को फेंक देती हैं । से युक्त वमन होताहै, ये दोनों असाध्य वातज वमन में विछिन्न ( थोडी २. देर में) | होती है। अल्प अल्प कषायरसयुक्त झागदार शब्द द्विष्टार्थयोगजावमन ! के साथ डकार सहित काले रंग की | पृत्यमेध्याशुचिद्विष्टदर्शनश्रवणादिभिः ३५ बडे वेग से कठिनता पूर्वक वमन होती है। तप्ते चित्ते हदि क्लिष्टे छर्दिष्टिाययोगजा। इसमें खांसी, मुखशोष, हृदय और मस्तकमें
___अर्थ-दुर्गंधित, अपवित्र, अशुच, और वेदना, स्वरंभंग और क्लांति होती है।
अनिष्ट दर्शन और श्रवणादि द्वारा जब पित्तजवमन ।
चिरा उपतप्त और हृदय क्लिष्ट होताहै पित्तात्क्षारोदकनिभं धूम्र हरितपीतकम् ॥ | तब द्विष्टार्थजा छर्दि होतीहै । सासृगम्लं कट्टष्णं च तृणमूर्छातापदाहवत्। ___ कृम्यादिजन्यछर्दि का प्रकरण । ____ अर्थ-पित्तजवमन में क्षारके जलके । वातादीनेव विमृशेत्कृमितृष्णामदौहृदे ६७॥ सदृश धूमवर्ण, हरी वा पीली, रुधिरसहित | शूलवेपथुहल्लासैर्विशेषात् कृमिजां यदेत्। खट्टी, कडवी और उष्णवमन होती है ।
कृमिहद्भागालँगैश्चइसमें तृषा, मूर्छा, ताप और दाह उत्पन्न
____अर्थ-कृमि, तृषा, आमदोष, और ग. होते हैं।
भणी के दौहृदसे उत्पन्न हुए वमनरोग में कफजवमन ।
दोषका लक्षण देखकर वातादि दोषका निकफातस्निग्धं घनं शीतं श्लेष्मतंतगवाक्षितम् श्चय करना चाहिये । परन्तु क्रमिजनित मधुरं लवणं भूरि प्रसक्तं लोमहर्षणम् । । छार्दरोगमें वातादि दोषोंके के लक्षणों के मुखश्वयथुमाधुर्यतंद्राहल्लासकासवत् ३५
| सिवाय शूल, कंपन, हल्लास, और विशेष अर्थ-कफज वमनरोगमें चिकनी, गाढी
करके ऋमिजनित छर्दिरोग के संपूर्ण लक्षण ठंडी, मीठी, नमकीन, कफके तंतुओं से
उपस्थित होतेहैं । युक्त जालीदार, और बहुत प्रमाण से वमन
दृद्रोगलक्षण । होतीहै, इसमें रोमांच, मुखशोष, मुखमें मीठा
स्मृतः पंच तु हृद्दाः ॥ ३८ ॥ पन, तंद्रा, हल्लास और खांसी उत्पन्न तेषां गुल्मनिदानोक्तैः समुत्थानैश्च संभवः होतेहैं ।
____ अर्थ-हृद्रोग पांच प्रकार के कहे गये संनिपातजवमन ।
| हैं । इन हृद्रोगों की उत्पत्ति उन कारणोंसे सर्वलिंगा मलैः सर्वैरिष्टोक्ता याच तां त्यजेत् होती है, जो आगे गुल्मनिदानमें कहेजायगे। अर्थ-सान्निपातिक वमनरोगोंमें पृथक्
वातजद्रोगके लक्षण । पृथक् तीनों दोषांके कहेहुए लक्षण दिखाई । वातेन शल्यतेऽत्यर्थं तुद्यते स्फुटतीव च ॥
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