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अष्टांगहृदय ।
अ० १.
अर्थ-रक्तमे हमें कच्चीगंधसेयुक्त, गरम, । अर्थ-धातुके क्षयसे कुपित हुए वातनमकीन रक्तके समान मूत्र उतरता है । । जन्य मधुमेह का रूप केवल वातज मेह के अब चार प्रकार के वातज प्रमेह का वर्णनं सदृश होता है, किंतु पित्तादि दोषों से करते हैं।
आवृत मार्गवाला वायु वातरक्तनिदान बसामेह के लक्षण । नामक अध्याय में कहे हुए लक्षणों को वसामेही बसामिश्र वसां वा मूत्रयेन्मुहुः१६ अकस्मात् दिखाता है अर्थात् क्षणभर में
अर्थ-वस मेहमें चर्बी मिला हुआ मूत्र | पूर्ण होजाता है और क्षणभर में खाली हो अथवा केवल चाही बार बार निकलती है। जाता है, यह कष्टसाध्य होता है । ___ मज्जागेह का लक्षण ।
सबको मधुमेहत्व । मज्जान मज्जमिश्रम् वा मज्जमेही मुहुर्मुहुः।
कालेनोपेक्षिताः सर्वे यद्यांति मधुमेहताम् । ___ अर्थ-मज्जा मेहमें केवल मज्जा अथवा
माता मज्जा मिला हुआ मूत्र बार बार निकलता है। सर्वेऽपि मधुमेहाख्या माधुर्याच्च तनोरतः ।
हस्तिमेह का लक्षण । ___ अर्थ-चिंकित्सा न किये जाने पर सब हस्तीमत्तं इवाजस्रं मूत्रं वेगविवर्जितम् १७ प्रकार के प्रमेह कालांतर में मधुमेह होजाते सलसीकम् विवद्धं च हस्तमही प्रमेहति ।।
है। क्योंकि सब प्रकारके प्रमेहों में प्राय: __ अर्थ-हस्तिमेहमें रोगी मतवाले हाथीकी
मूत्र मधु के सदृश मिष्ट होता है इसलिये तरह निरंतर वेगवर्जित पूत्र त्याग करता
शरीर की मधुरता के कारण सब प्रकार के है, कभी कभी मूत्रमें विवद्वता भी होती है,
प्रमेह मधुमेह संज्ञक होते हैं । मूत्रके साथ लसीका निकलता है ॥
कफजमहके उपद्रव ॥ मधुमेह का वर्णन ।
अविपाकोऽरुचिश्छर्दिनिद्राकासः सपीनसः। मधुमेही मधुसमम्
उपद्रवाः प्रजायंते मेहानां कफजन्मनाम् । : जायते स किल द्विधा ॥ १८ ॥ क्रुद्ध धातुक्षयाद्वायौ दोषावृतपथेऽथवा ।
अर्थ-कफज प्रमेहमें अन्नका अपरिपाक ___ अर्थ-मधुमेह में मधुके समान मूत्र होता / अरुचि, वमन, निद्रा, खांसी, और पीनस है । यह दो प्रकार का होताहै, एक तो ये उपद्रव होते हैं । धातु के क्षीण होने पर वायुके कुपित होने पित्तजमेहके उपद्रव ॥ से, अथवा पित्तादि दोष से वायु का मार्ग बस्तिमेहनयोस्तोदो मुष्कावदरणं ज्वरः। रुकजाने पर मधुमेहकी उत्पत्ति होती है। दाहस्तृष्णाम्लको मूर्छा बिड्भेदः
पित्तजन्मनाम् ॥ २३ ॥ मधुमेह का कष्टसाध्यत्व ।
__ अर्थ-पित्तज प्रमेहमें वस्ति और उपआवृतो दोषलिंगानि सोऽनिमित्तं प्रदर्शयेत् । क्षीणः क्षणात्क्षणात् पूर्णो भजते कृच्छ्र
। स्थेन्द्रियमें सुई छिदने के समान बेदना हो. साध्यताम् । तीहै; अंडकोषमें विदीर्णता, ज्वर दाह, तृषा
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