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निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
अश्मरीका पूर्वरूप | अथाऽस्याः पूर्वलक्षणम् ॥ ७ ॥ बस्त्याध्मानं तदासन्नदोषेषु परितोऽतिरुक् मूत्रेच बस्तगंधत्वं मूत्रकृच्छ्रं ज्वरोऽरुचिः अर्थ - अश्मरी के पूर्वरूप ये हैं, यथावस्ति का फूलना, बस्ति के पास वाले स्थानों में वेदना, मूत्रमें बकरे की सी गंध. मूत्राघात ज्वर और अरुचि ।
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अश्मरी के सामान्य लक्षण | सामान्यलिंग रुङ्नाभिसेवनीवस्तिमूर्धसु । विशीर्णधारं मूत्रं स्यात्तया मार्गनिरोधने ॥ तद्वय पायात्सुखम् मेहेदच्छम् गोमेद कोपमम् तत्संक्षोभात् क्षते सास्त्रमाया साच्चातिरुग्भवेत्। अर्थ - नाभि, सीवन, (गुदा से पुंज - नेन्द्रिय के बीच की सीमन के सदृश रेखा) और वस्तिस्थान के ऊपर वेदना होती है। अश्मरी से मूत्रका मार्ग रुक जाता है, इस लिये मूत्रकी धार छिन्न भिन्न निकलती है। यदि वायु के वेग से अश्मरी अपने स्थान से हट जाती है अर्थात् मूत्रमार्ग से स्थाना न्तर में चली जाती है तौ सुखपूर्वक गोमेदक माण के समान ललाई लिये हुए मूत्र निकलता है । मूत्र के विपरीत मार्ग में प्रवृत्त होने से मूत्र के स्रोत में घाव होजाता है अथवा हाथी घोड़े पर चढकर मार्ग में चलने के श्रम से भी घाव होजाता है, उस मूत्र के साथ रक्त निकलता है और बडी तीव्र वेदना होती है ।
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वाताश्मरी के लक्षण |
तत्र वाताद्भृशार्त्यत तान् खादति वेपते । मृद्राति मेहनम् नाभि पीडयत्यनिश
क्वणन् ॥ ११ ॥
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सानिलम् मुंचति शकृन्मुहुर्मेहति विंदुशः । श्वावा रूक्षाऽश्मरी चास्य स्याच्चिताकण्टकैरिव ॥ १३ ॥
अर्थ- - वातज अश्मरी में रोगी अत्यन्त वेदना से कराता हुआ दांतों को चा डालता है और कांपने लगता है, निरंतर पुंजननेन्द्रिय और नाभि को हाथ से रिगडता है, और अधोवायु के साथ मूत्र निकल जाता है, मूत्र बूंद बूंद करके टपकता है । ऐसे रोगी की अश्मरी का रंग काला वा लाल होता है और कांटे के सदृश छोट छोटे अंकुरों से व्याप्त रहती है । पित्तज अश्मरी |
वित्तेन दाते वस्तिः पच्यमान इवोष्मवान् । भल्लातकास्थिसंस्थानांरक्तपीताऽसिताऽ
श्रमरी ॥ १३ ॥
अर्थ-पित्तज अश्नरीरोग में वस्ति में जलन होती है, और ऐसा मालूम होने लगता है, कि कोई क्षार से जलाता है । पित्ताश्मरी छूने में बडी गरम होती है । इसका आकार भिलावेकी गुठली के समान होता है । यह लाल पीले वा काले रंगकी होती है ।
कफाश्मरी के लक्षण ।
तस्तुद्यत इव श्लेष्मणा शीतलो गुरुः । अश्मरी महती श्लक्ष्णा मधुवर्णाऽथवा सिता
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अर्थ-कफज अश्मरीरोग में वस्ति स्थान में सुई चुभने कीसी वेदना होती है यह छूने में ठंडी और भारी होती है, यह as और चिकनी होती है, इसका रंग मधु के सदृश अथवा सफेद होता है ।
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