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(३३२)
अष्टांगहृदय।
हतानिष्टप्रबादाश्च दूषणं भस्मपांसुभिः।१८। | की हुई वस्तु, पुरीष, दुर्गधित द्रव्य, न
अर्थ-हाहाकार करके क्रंदन (आर्तस्वर) | देखने के योग्य द्रव्य, निःसार वस्तु मैथुन, उंचे स्वर से रोदन, पांव खिसलना, वैद्य | कपास, भुस, सीसा, शत्रु, अधोमुखी शय्या, के संबंधियों का विनाश, आपति में फंसे आसन, वा सवारी अथवा ओंधे कलश, हुओं का देखना, वैद्य वा अन्य किसी के शरवादि पात्र इनका देखना अशुभ सूचवस्त्र छत्री और जूताओं का नाश, चैत्य- क है । ध्वजा वा भरे हुए पात्रों का गिरना, अमं
पुरुषादि पक्षियों का शुभाशुभत्व । गलसूचक प्रवादों का होना, वैद्य के ग- | पुसंशा-पक्षिणोबामाःस्त्रीसंशादाक्षिणाःशुभाः 'मन समय मार्ग में धूल पांशु का उडना, ___अर्थ -हंस, चकोर, तोता आदि पुरुषये सब अशुभ चिन्ह हैं ।
संज्ञक पंक्षी वामदिशा में और वलाका साअन्य अशुभ चिन्ह । रिका आदि स्त्रीवाची पक्षी दक्षिण दिशा पथश्छेदोऽहिमार्जारगोधासरठबानरे। में शुभ होते हैं। इससे विपरीत अशुभ दीप्तां प्रतिदिश बाचं कराणां मृगपक्षिणाम्।। होते हैं। कृष्णधान्यगुडोदश्विल्लवणासबचर्मणाम्। सर्षपाणां बसातैलतृणपं धनस्य च ॥ २०॥ स्वगमगादिका शुभाशुभत्व ।। क्लीवक्ररश्वपाकानां जालबागुरयोरपि । प्रदाक्षणं खगमृगा यांतो नैव श्वजंबुकाः । छर्दितस्य पुरीषस्य पूतिदुर्दर्शनस्य च ॥ २१॥ अयुग्नाश्च मृगाः शस्ता शस्ताः नित्य च दर्शने निःसारस्य व्यबायस्य कार्पासादेररेरपि। चाषभासभरद्वाजनकुलच्छागबर्हिणः। शयनासनयानानामुत्तानानां तु दर्शनम् । ___ अर्थ-मृग और पक्षियोंका वाई दिशासे न्युजानामितरेषां च पात्रादीनामशाभनम् । दाहिनी ओर जाना शुभ है परन्तु कुत्ते और . अर्थ-वैद्य के गमन समय सर्प, विल्ली,
शृगाल का इस तरह जाना अशुभ है । इन गोधा, किरकेंटा और वंदर द्वारा मार्ग का ।
का दाहिनी ओर से बांई ओर जाना अच्छा कटना अर्थात् वैद्य के आगे होकर इन
है । अयुग्म मृगोंका देखना अच्छा है । नीजीवों का इधर से उधर को निकल जाना । लकंठ, भास, मुर्गा, नकुल, बकरा और मोर अशुभ है । मांसाहारी चीते शगलादि पशुये चाहें दक्षिण दिशामें हों, चाहें वाम दिशा
और वाज शिकरा आदि पक्षियों का उस में हो इनका देखना सदा शुभ है ॥ . दिशा में बोलना जिसमें सूर्य चमक रहा
| अशुभ पक्षियोंका वर्णन ॥ हो, वैद्य के गमन समय वा रोगी के घरमें | अशभं सर्बथोलकबिडालसरठेक्षणम् । २५ । घुसने के समय कृष्णधान्य, गुड, उद- अर्थ-उल्लू, बिडाल, और किरकेंटा ये श्वित ( तक्र. ) नमक, आसव, चर्म, सरसों, । चाहें दक्षिण दिशामें हैं । चाहे वाम दिश चर्वी, तेल, तृण, कीचड, ईंधन, नपुंसक, में हों, चाहें युग्म हो, चाहें अयुग्म हों, ये सनिर्दयी, चांडाल, पक्षियों का जाल, वमन | दा ही अशुभ हैं ।
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