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नहीं आते हैं ।
( ३४६ )
मष्टांगहृदय ।
आच्छादित हो जाने के कारण प्रायः पसीने वैषम्यं तत्रतत्रांगे तास्ताः स्युर्वेदनाभ्चलाः ।
पादयोः सुप्तता स्तंभः पिंडिकाद्वेष्टनं श्रमः ॥ विश्लेष इव संधीनां साद ऊर्वोः कटग्रिहः । पृष्ठ क्षोदमिवाप्नोति निष्पीडयत इवोदरम् ॥ छिद्यत इव चास्थीनि पार्श्वगानि, विशेषतः । हृदयस्य ग्रहस्तोदः प्राजनेनेव वक्षसः १३ ॥ स्कंधयोर्मथनं बाह्वोर्भेदः पीडनमंसयोः । अशातर्भक्षणे इम्बोर्जु भण कर्णयोःस्वनः १४ निस्तोदः शखयोर्मूर्ध्नि वेदना विरसास्थता । कषायास्यत्वमथवा मलानामप्रवर्तनम् ॥ रूक्षारुणत्वगास्याक्षिनखमूत्रपुरीषता । प्रसेका रोचक श्रद्धाविपाकास्वेदजागराः ॥ कंठौष्ठशोषस्तृद् शुष्कौ छर्दिका सौविषादिता हर्षो रोमांगदंतेषु वेपथुः क्षवथोर्ग्रहः ॥ १७ ॥ भ्रमः प्रलापो घर्मेच्छा विनामश्चानिलज्वरे ।
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ज्वर का पूर्व रूप |
तस्य प्राग्रूपमालस्यमरतिर्गात्रगौरवम् ॥ ६ ॥ आस्यवैरस्यमरुचि जृंभा नास्त्राकुलाक्षता । अंगमविपाकोऽल्पप्राणता बहुनिद्रता रोमहर्षो विनमनं पिंडिकोद्वेष्टनं क्लमः । हितोपदेशेष्वशांतिः प्रातरम्लपटूषणे ८ ॥ द्वेषः स्वादुषु भक्ष्येषु तथा बालेषु तृड् भृशम् । शब्दाग्निशतिवातांवुच्छायो ध्वनिमिततः इच्छा द्वेषश्च तदनु ज्वरस्य व्यक्तता भवेत् ।
अर्थ-ज्वर के प्राग्रूप ये हैं, यथा--- लस्य, अरति ( चित्त की अनवस्थिति ) शरीर में भारापन, मुख में विरसता, भरचि जंभाई, आंखों का डबडबाना और आकुलता अंगमर्द, अविपाक ( मुक्त अन्नका पचना ) बलकी अल्पता, नोंदका बहुत आना, रोम खड़े होना, अंगों की झुकना, पिडलियों में ऐंठन, क्लान्ति हितकारी वातों का न मानना खट्टी नमकीन और चरपरी वस्तुओं का अच्छा लगना, मिष्ट भोजनों में द्वेष, बालकों की तोतली बोली को अप्रिय मानना, प्यास का अधिक लगना, तथा शब्द, अग्नि, शीत, वात, जल, छाया और उष्ण इनमें विना कारण ही कभी प्रीति और कभी भप्रीति होती है जैसे कभी अप्रिय शब्द पर भी प्रसन्न होना और कभी वेणुवीणादि के प्रिय शब्दों से भी द्वेष करना । ये सब र के पूर्वरूप हैं अर्थात् इसके पीछे ज्वर व्यक्तरूप होजाता है ।
वातजज्वर के लक्षण | आगमापगमक्षोभमृदुताचेदनोष्मणाम् १०॥ होती है, हनुमें भोजन
अर्थ- वातज ज्वर में उधर के आगमन और मोक्ष में विषमता, तथा ज्वर के क्षोभ, मृदुता, वेदना और गरमाई में विषमता अर्थात् इनमें कभी अधिकता और कभी न्यूनता होती है तथा जिस जिस अंगमें जो जो वेदना नीचे लिखी गई हैं उन में भी चंचलता होती है, जैसे पांवों का सुन्न होजाना, स्तंभता, पिंडलियों का उद्वेष्टन, पसीना, संधियों का विश्लेष, उसे में शिथिलता, कमर का जकडना, पीठ में कूटने कीसी वेदना, जठर में पीडत करने की सी वेदना, अस्थियों में विशेष करके पसलियोंमें हडफू
टन, हृदय में जकडना, वक्षः स्थल में चावुक की सी, चमचमाहट, दोनों कंधों
में मथने की सी, दोनों वाढ में भेदन की सी
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अंसफलक में पीडन करने की सी बेदना
करने की अशक्ति
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