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मांगलय।
कारणों से उत्पन्न होते हैं, जैसे तिक्त और | तथा मिथ्या उपचार से सन्निपात अर्थात् कटु मादि उभय दोषनिर्दिष्ट पदार्थों के | त्रिदोष का प्रकोप होता है । सेवन से वातपित्त कुपित्त होते हैं, इसी दोषों का विकारकारित्व तरह और भी जानो।
प्रतिरोगमिति कुद्धा रोगाधिष्ठानगामिनीः ।
रसायनीः प्रपद्याशु दोषा देहे विकुर्वते , ॥ सन्निपात का कारण ।
अर्थ-प्रत्येक रोग में पूर्वोक्त संपूर्ण मिश्रीभावात्समस्तानां सन्निपातस्तथा- कारणों से दोष प्रकुपित होकर रोगों के
पुनः ॥ १९ ॥ | रसरक्तादि स्थानों में गमन करनेवाली और संकीर्णाजीणविषमाविरुद्धाद्ध्यशनादिभिः ।।
रसवाहिनी नाडियों द्वारा शरीर में शीघ्र व्यापन्नमद्यपानीयशुष्कशाकाममूलकैः२०॥ पिण्याकमृद्यवसुरापूतिशुष्ककृशामिषैः। विकार उत्पन्न करदेते हैं । दोषत्रयकरैस्तैस्तैस्तथानपरिवर्ततः ॥२१॥ | इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां मथुरा
धातोर्दुष्टात्पुरोबाताद् ग्रहवेशाद्विषाद्रात् । निवासि श्रीकृष्णलाल कृत भाषा "दुष्टनात्पर्वताश्लेषाद्ग्रहैर्जन्मक्षपीडनात्र२।। मिथ्यायोगाच्च विविधात्पापानां च
टीकायां निदानस्थाने निषेवणात्
प्रथमोऽध्यायः । स्त्रीणांप्रसववैषम्यात्तथा मिथ्योपचारतः ॥ : अर्थ-उक्त तीनों दोषों के प्रकुपित होने
द्वितीयोऽध्यायः। के संपूर्ण हेतु जब आपस में मिल जाते हैं तब सन्निपात अर्थात् वात पित्त कफ तीनों का प्रकोप होता है । तथा संकीर्ण भोजन, अर्थ-अब हम यहां से ज्वरनिदान की भजीर्ण, विरुद्ध भोजन, अध्यशन, व्याप- | व्याख्या करेंगे। ममद्य, व्यापन्न पानी, सूखा शाक, कच्ची ज्वर का निर्देश । मूली, पिण्याक (सरसों वा तिल का कल्क) | "ज्वरो रोगपतिः पाप्मामृत्तिका, यव ,सुरा, दुर्गधितसूखा और कृश
मृत्युरोजोऽशनोऽतकः । पशु का मांस, अन्य त्रिदोषकारक पदार्थ क्रोधो दक्षाध्वरध्वंसी रुद्रोप्रनयनोद्भवः॥
जन्मांतयोर्मोहमयः संतापात्माऽपचारजः । अन्न का परिवर्तन, दूषित धातु, पूर्वकी विविधर्नामभिःकरो नानायोनिषु वर्तते २॥ पवन, भृत्यादि पर क्रोधका आवेश, विषभ
अर्थ-ज्वर रोगों का अधिपति, पाप क्षण, गरभक्षण, दुष्ट अन्न, पर्वताश्लेष, ग्रह- भाव, मत्युस्वरूप, संपूर्ण धातओं के आद्वारा जन्मनक्षत्र का पीडन, विविध मिथ्या- प्यायित ओज को खानेवाला, मारक, क्रोयोग, पापों का आचरण, प्रसववैषम्य (व. धात्मक ( दक्षसे अपमानित हुए महेश्वर म्चा जनने के समय विषमता होना), के क्रोध से उत्पन्न ), दक्षके यज्ञका नाश
ख्यास्यामः।
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