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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मांगलय। कारणों से उत्पन्न होते हैं, जैसे तिक्त और | तथा मिथ्या उपचार से सन्निपात अर्थात् कटु मादि उभय दोषनिर्दिष्ट पदार्थों के | त्रिदोष का प्रकोप होता है । सेवन से वातपित्त कुपित्त होते हैं, इसी दोषों का विकारकारित्व तरह और भी जानो। प्रतिरोगमिति कुद्धा रोगाधिष्ठानगामिनीः । रसायनीः प्रपद्याशु दोषा देहे विकुर्वते , ॥ सन्निपात का कारण । अर्थ-प्रत्येक रोग में पूर्वोक्त संपूर्ण मिश्रीभावात्समस्तानां सन्निपातस्तथा- कारणों से दोष प्रकुपित होकर रोगों के पुनः ॥ १९ ॥ | रसरक्तादि स्थानों में गमन करनेवाली और संकीर्णाजीणविषमाविरुद्धाद्ध्यशनादिभिः ।। रसवाहिनी नाडियों द्वारा शरीर में शीघ्र व्यापन्नमद्यपानीयशुष्कशाकाममूलकैः२०॥ पिण्याकमृद्यवसुरापूतिशुष्ककृशामिषैः। विकार उत्पन्न करदेते हैं । दोषत्रयकरैस्तैस्तैस्तथानपरिवर्ततः ॥२१॥ | इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां मथुरा धातोर्दुष्टात्पुरोबाताद् ग्रहवेशाद्विषाद्रात् । निवासि श्रीकृष्णलाल कृत भाषा "दुष्टनात्पर्वताश्लेषाद्ग्रहैर्जन्मक्षपीडनात्र२।। मिथ्यायोगाच्च विविधात्पापानां च टीकायां निदानस्थाने निषेवणात् प्रथमोऽध्यायः । स्त्रीणांप्रसववैषम्यात्तथा मिथ्योपचारतः ॥ : अर्थ-उक्त तीनों दोषों के प्रकुपित होने द्वितीयोऽध्यायः। के संपूर्ण हेतु जब आपस में मिल जाते हैं तब सन्निपात अर्थात् वात पित्त कफ तीनों का प्रकोप होता है । तथा संकीर्ण भोजन, अर्थ-अब हम यहां से ज्वरनिदान की भजीर्ण, विरुद्ध भोजन, अध्यशन, व्याप- | व्याख्या करेंगे। ममद्य, व्यापन्न पानी, सूखा शाक, कच्ची ज्वर का निर्देश । मूली, पिण्याक (सरसों वा तिल का कल्क) | "ज्वरो रोगपतिः पाप्मामृत्तिका, यव ,सुरा, दुर्गधितसूखा और कृश मृत्युरोजोऽशनोऽतकः । पशु का मांस, अन्य त्रिदोषकारक पदार्थ क्रोधो दक्षाध्वरध्वंसी रुद्रोप्रनयनोद्भवः॥ जन्मांतयोर्मोहमयः संतापात्माऽपचारजः । अन्न का परिवर्तन, दूषित धातु, पूर्वकी विविधर्नामभिःकरो नानायोनिषु वर्तते २॥ पवन, भृत्यादि पर क्रोधका आवेश, विषभ अर्थ-ज्वर रोगों का अधिपति, पाप क्षण, गरभक्षण, दुष्ट अन्न, पर्वताश्लेष, ग्रह- भाव, मत्युस्वरूप, संपूर्ण धातओं के आद्वारा जन्मनक्षत्र का पीडन, विविध मिथ्या- प्यायित ओज को खानेवाला, मारक, क्रोयोग, पापों का आचरण, प्रसववैषम्य (व. धात्मक ( दक्षसे अपमानित हुए महेश्वर म्चा जनने के समय विषमता होना), के क्रोध से उत्पन्न ), दक्षके यज्ञका नाश ख्यास्यामः। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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