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इसी तरह दाहादि सन्निपात में कफके अर्थ-अभिषंगज ज्वर भूतग्रहावेश, औद्वारा पित्त प्रशमित होजाता है और दाह | पगंध विष, क्रोध, भय, शोक, और काम के शांत होने पर कफ की वृद्धि के कारण से उत्पन्न होता है । इनमें से भूतग्रह के तंद्रा, ष्टीवन, वमन भौर क्लान्ति ये उत्पन्न अभिषंग से जो ज्वर उत्पन्न होता है उस होते हैं।
में रोगी अकस्मात हंसता और रोता है । आगंतुज जर के चार भेद । औषधगंध के अभिषंग से जो घर होता आगतुरभिघाताभिषंगशापाभिचारतः। है उसमें मी, शिरोवेदना, कंपन और छींक चतुर्धा.
आने लगती है विषजज्वर में मूर्छा, अतिअर्थ-भागंतु ज्वर चार प्रकार का
| सार, मुख में श्यावता, दाह और हृद्रोग होते होताहै, यथा-अभिघातज, अभिषंगज, न,
हैं। क्रोधज ज्वर में कंपन और शिरोवेदना; भिशापज और अभिचारज ।
भयज़ और शोकज ज्वर में प्रलाप; कामज अभिघातज के लक्षण । ज्वर में भ्रम, अरुचि, दाह, तथा लज्जा, अत्र क्षतच्छेददाहाचैरभिघातजः ३८॥
निद्रा, बुद्धि और धैर्य का नाश हो जाश्रमाच्च तस्मिन्पवनःप्रायो रक्तं प्रदूषयन् ।। सव्यथाशोमवैवये सरुजं कुरुते ज्वरम् ॥
ताहै ॥ अर्थ-उक्त चार प्रकार के आगन्तुक | ग्रहादिज्वर में सन्निपात । ज्वरों में से अभिघातज ज्वर क्षतच्छेद अ. | प्रहादौ सनिपातस्य भयादो मरुतस्त्राये। र्थात शस्त्रप्रहार दाहादि और मार्ग चलने
कोपः कोपे ऽपि पित्तस्यआदि के परिश्रम से उत्पन्न होता है । अर्थ-प्रहावेषज, औषध गंधज और विइस अभिघातज ज्वर में विशेष करके वायु पज घर में त्रिदोष का प्रकोप होता है; रक्त को दूषित करके ज्वर को उत्पन्न क- भयज, शोकज और कामज ज्वर में वायु रता है, इसमें न्यथा, सूजन, विवर्णता और
का प्रकोप होताहै, इसी तरह क्रोधज ज्वरम वेदना होती है । प्रायः प्रहण से अन्य दोष
पित्त का प्रकोप होता है । अपि शब्द से भी कुपित हो जाते हैं।
वात का भी कोप होता है।
शापाभिचारज ज्वर । अभिषंगज के लक्षण ।
यौ तु शापाभिचारजौ ॥४३॥ महावेशौषधिविषक्रोधभीशोककामजः।। | सनिपातज्वरो घोरौ तावसह्यतमौ मतौं । अभिषंगात्
अर्थ-अन्य सन्निपातज अरों में जो ___ ग्रहेणाऽस्मिन्नकस्माद्धासरोदने ४०॥
अभिशापज और अभिचारज हैं, ये बडे भऔषधीगधजे मूर्छा शिरो रुग्वेपथुः भवः। विषान्मूतिसारास्यश्यावतादाहहद्दाः ॥
यंकर और असह्य होते हैं। कोधात्कंपःशिरोरुकच प्रलापो भयशोकजे। मंत्रोत्पन्नज्वर के लक्षण । कामाद्भमोऽरुचिर्दाहो हीनिद्राधीधतिक्षयः तत्राभिचारिकर्मयमानस्य तप्यते ४४॥
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