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ओश्म
श्रीहरिम्बन्दे श्रीवृन्दावनविहारिणेनमः निदानस्थानम्
प्रथमोऽध्यायः ।
अथातो सर्वरोगनिदानम् व्याख्यास्यामः । इति ह स्माहुत्रियादयो महर्षयः ।
अर्थ - जव आत्रेयादि महर्षिगण हेतु - लिंग और औषध के परिज्ञान वाले सूत्रस्थान और जीवन मरण के आधार वाले शरीरस्थान की व्याख्या कर चुके तव तदनंतर कहने लगे कि अब 'सर्वरोगनिदान' नामक अध्याय की व्याख्या करेंगें । रोग के पर्यायवाची शब्द | " रोगः पाप्मा ज्वरो व्याधिर्विकारोदुःखमामयः ॥ १ ॥ यक्ष्मा कगदाबाधशब्दाः पर्यायवाचिनः अर्थ- रोग, पाप्मा, ज्वर, व्याधि, कार, दुःख, आमय, यक्ष्मा, आतंक, गद और Hai | Tite शब्द रोग के
वि
पर्यायवाची हैं ।
रोगविज्ञानके पांच प्रकार । निदानं पूर्वरूपाणि रूपाण्युपशयस्तथा २ ॥ संप्राप्तिश्चेति विज्ञानं रोगाणां पंचधा स्मृतम् |
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अर्थ - रोगों के निर्णय करने के पांच प्रधान उपाय हैं, यथा- निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय और संप्राप्ति । निदान के पर्याय | निमित्तहेत्वायतनप्रत्ययोत्थानकारणैः ॥३॥ निदानमाहुः पर्यायैः
अर्थ - निदान के पर्यायवाची शब्द छः हैं यथा - निमित्त, हेतु, आयतन, प्रत्यय, उत्थान और कारण । रोग की उत्पत्ति के हेतु का नाम निदान है ।
माग्रूप के लक्षण |
प्रापं येन लक्ष्यते उत्पत्सुरामयो दोषविशेषेणानधिष्ठितः ॥ लिंगमव्यक्तमल्पत्वाद्व्याधीनां तद्यथायथम् अर्थ- जिनं आलस्य अरुचि आदि के उत्पन्न होने से ज्वरादि रोगों के होने के लक्षण दिखाई दें । उन्हें प्राग्रूप कहते हैं परंतु वातादि दोषों द्वारा व्यक्तरूप से अनासादित हों अर्थात् - वातादि दोषों के लक्षण प्रकट न हुए हों । इस कहने का तात्पर्य यह है कि वातादि दोषों के बिना व्याधि का होना ही असंभव है, क्योंकि यह
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