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'शारीरस्थान भाषाटीकासभेत ।
हो कि हृदय वह कुष्ठरोग से मरता है 1 प्रमेह से मरण |
austeः सह यः पिबेत् । बहुविधं स्वप्नेस प्रमेहेण नश्यति ४४ ॥ अर्थ - जो स्वप्न में चांडाल के साथ घृ तेल आदि अनेक प्रकार के स्नेहपान करता है वह प्रमेह रोग से मरता है ।
में कमल उत्पन्न हुआ है तो
उन्माद से मरण ।
उन्मादेन जले मज्जेद्यो नृत्यन् राक्षसैः सह । अर्थ- जो राक्षसों के साथ नाचता २ में डूबता है वह उन्माद रोग से मरता है ।
जल
मृगीरोग से मरण | अपस्मारेण यो मर्त्यो नृत्यन् प्रेतेन नीयते ॥ अर्थ - जिस नाचते हुए मनुष्य को स्वप्न में प्रेत लेजाते हैं वह अपस्मार रोग से मरता है 1
गर्दभादिया से मृत्यु | यानं खरोष्ट्रमार्जारकपिशार्दूलस्करैः । यस्य प्रेतैः श्रगार्वा स मत्योर्वर्तते मुखे ॥
अर्थ - जो स्वप्न में गधा, ऊंट, बिल्ली, बंदर, शार्दूल, शूकर वा शृगाल पर चढकर गमन करता है उसको मौत के मुख में समझना चाहिये ।
मृत्यु के अन्य स्वप्न | अपूपशष्कुलीर्जग्ध्वा विबुद्धस्तद्विधं वमन् । न जीवति
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तो शीघ्र मरजाता है । सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहण देखने से नेत्ररोग होते हैं । सूर्य चन्द्रमा का पात देखने से दृष्टि मारी जाती है ।
अन्य अशुभ स्वप्न ।
मूनि वंशलतादीनां संभवो वयसां तथा ॥ | निलयो मुंडता काकगधाद्यैः परिवारणम् । तथा प्रेतपिशाचस्त्रद्रविडांधगवाशनैः ॥ संगो वेत्रलता वंशतृणकंटकसंकटे । श्वभ्रश्मशानशयनं पतनं पांसुभस्मनोः ५० ॥ मज्जनं जलपं कादौ शीघ्रेण स्त्रोतसा इतिः । नृत्यवादित्रगीतानि रक्तस्रग्वस्त्रधारणम् ॥ वर्योऽगवृद्धिरभ्यगो विवाहः श्मश्रुकर्म च । पक्वान्नस्नेहमद्याशः प्रच्छर्दनविरेचने ५२ ॥ हिरण्यलोहयोर्लाभः कलिर्बंधपराजयौ । उपानद्युगनाशश्च प्रपातः पादचर्मणोः ५६ ॥ हर्षो भृशं प्रकुपितैः पितृभिश्चावभर्त्सनम् । प्रदीपग्रहनक्षत्रदन्तदेवतचक्षुषाम् ॥ ५४ ॥ पतनं वा बिनाशो वा भेदने पर्बतस्य च । कानने रक्तकुसुमे पापकर्मनिबेशने ॥ ५५ ॥ चितांधकारसंवाधे जनन्यां च प्रबेशनम् । पातः प्रासादशैलादेर्मत्स्येन ग्रसनं तथा । ५६ ॥ काषायिणामसौम्यानां नग्नानां दंडधारिणाम् रक्ताक्षाणां च कृष्णानां दर्शनं जातु नेष्यते ।
अर्थ - सिर में बांस वा लतादि का उगना, पक्षियों का घोंसला बनाना, सिर का मुंडन, काकगृधू आदि पक्षी तथा प्रेत पिशाच, स्त्री, द्रविड, अंध और गोमांसभक्षकों से परिवृत होना, वेतलता, बांस, तृण, कंटक इनसे आच्छादित द्वार का न पाना, श्वभ्र वा श्मशान में सौना, पांसु और भस्म में गिरना, जल और कीचनें डूबना, स्रोतों के द्वारा शीघ्र हरण, नाचना, वजाना,
अक्षिरोगाय सूर्यग्रहणेक्षणम् ॥ ४७ ॥ सूर्याचन्द्रमसोः पातदर्शनम् दृग्विनाशनम्
अर्थ - जो स्वप्न में मालपुआ पूरी का भोजन करे और जगने पर वह वमन करे | गाना, लाल माला वा लाल वस्त्र धारण
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