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(११४)
अष्टांगहदप।
रिष्टारिष्टका ज्ञान । सहसा विकृति उत्पन्न होना । ये सब रिष्ट मरिष्टं नास्ति मरणं दृष्टरिष्ट च जीवितम् ॥ के लक्षण संक्षेप से कहे गये हैं। अरिष्टे रिष्टविज्ञानं न च रिष्टेऽप्यनैपुणात् २ |
| केशादि में रिष्टके चिन्ह । अर्थ-रिष्ट के बिना मृत्यु नहीं होती है
केशरोमं निरभ्यंगं यस्याऽभ्यक्तमिवेक्ष्यते । और रिष्ट उपस्थित होने पर जीवन भी
___अर्थ-जिसके केश और रोम विना तेल नहीं है । वट वृक्षादि में फूल के विना भी
लगाये भी तेल लगाये से प्रतीत होते हैं वह फल की उत्पत्ति देखी जाती है, पर यह मृत्यु से प्रसित समझना चाहिये । कहीं कहीं होता है, इस का विचार सव इन्द्रियविकृति में रिष्ट चिन्ह । जगह नहीं है।
यस्यात्यर्थ चले नेत्रे स्तब्धांतर्गतानते ॥ रिष्टारिष्ट का सम्यक् ज्ञान न होने के जिह्ये विस्तृतसंक्षिप्ते संक्षिप्तविनतश्रुणी। कारण अज्ञ लोगों को अरिष्ट में रिष्ट
उद्धांतदर्शने हीनदर्शने नकुलोपमे ॥ ७ ॥ का ज्ञान और रिष्ट में भी रिष्टका ज्ञान नहीं
कपोतामे अलातामे सुते लुलितपक्ष्मणी ।
नासिकाऽत्यर्थविवृता संवृता पिटिकाचिता होता है।
उच्छूना स्फुटिता म्लानाकृष्णात्रेय का मत ।
अर्थ- जिसके नेत्र इधर उधर को अकेचित्तु तद्विधेत्याहुःस्थाय्यस्थायिविभेदतः
त्यन्त चलायमान होते हैं, जिसके नेत्र दोषाणामपि बाहुल्याद्रिष्टाभासः समुद्भधेत्
स्तब्ध ( ठहरे ) हो जाते हैं, जिसके नेत्र सदोषाणांशमे शाम्येत्स्थाय्यवश्यतु मृत्यवे भीतर को गढ जाते हैं वा वाहर निकल . अर्थ-कृष्णात्रेय के मत से रिष्ट दो प्र- पडते हैं, जिसके नेत्र कुटिल, लंबे, वा कार का होता है, एक स्थायी, दूसरा अ- संकुचित होजाते हैं, जिसकी भृकुटी नीची स्थायी । दोषों की अधिकता के कारपा
होकर सुकड जाती हैं, जिसकी दृष्टि रिष्टका आभास होता है और जब दोष
विभ्रांत होजाती है, का नष्ट होजाती है शांत हो जाते हैं तब रिष्टरभास भी शांत
अथवा जिसकी दृष्टि नकुल के सदृश कहो जाता है । परन्तु स्थायी अरिष्ट निश्चय
पोत के सदृश लाल रंग की हो जाती है मृत्यु का सूचक होता है।
अथवा आंसू बहने लगते है जिसके पक्ष्म रिष्ट के लक्षण । वातोद्धत की तरह शृंखलारहित होजाते है। रूपेंद्रियस्वरच्छाया प्रतिच्छायाक्रियादिषु॥ जिसकी नाक बहुत फटजाती है, वा सुकड अन्येष्वपि च भायेषु प्राकृतेष्वानमित्ततः। जाती है । फुसियोंसे व्याप्त हो जाती है अविकृतिर्या समासेन रिष्टं तदिति लक्षयेत् ॥
थवा सूजन, फटन और म्लानता से युक्त अर्थ-रूप, इन्द्रिय, स्वर, छाया, प्रति- हो जाती है । वह मरणाभिमुख होता है। च्छाया, शारीरक, मानसिक और वाचिक
ओष्ठादिमें रिष्टचिन्ह । व्यापार, तथा अन्य प्राकृतिक भावों में |
यस्यौष्ठो यात्यधोऽधरः।
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