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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(३१३)
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मर्माभिघात में चिकित्सा। । मर्माहतमें सावधानी। वर्धयेत्संधितोगात्रं मर्मण्यभिहते दूतम् ६६ | मर्माभिघातः स्वल्पोपिप्रायशोवाधतेतराम। छेदनासंघिदेशस्य संकुचति सिरा हतः। रोगा मर्माश्रितास्तद्वत्प्रकांता यत्नतोऽपि जीवित प्राणिनां तत्र रक्ते तिष्ठति तिष्ठति ॥
च" ॥ ७०॥ अर्थ-मर्म के आहत होने पर शरीर अर्थ-मर्माभिघात अत्यन्त अल्प होने का संधिस्थान शीघ्रतापूर्वक छेदन करदे पर भी प्रायः अत्यन्त वेदना करता है तथा इसका कारण यह है कि संधि के छेदन से | अन्य संपूर्ण रोग जो मर्मस्थान पर होते हैं सिरा सुकड जाती हैं । सिराओं के संकु- बे भी वडा कष्ट देते हैं । इसलिये मर्माचित्त होने से रक्त का निकलना वन्द हो- भिघातकी वडी सावधानी से रक्षा करनी जाता है और रुधिर का बहना वन्द होने चाहिये तथा उस स्थान पर हुए रोगों का से जीवन स्थित रहता है।
भी प्रतीकार वडे यत्न से करे । अमविद्ध का जीवन । सुविक्षतोऽप्यतो जीवेदमणिनमर्मणि। हात श्री अष्टांगहृदये भाषाटीकायां प्राणघातिनि जीवत्तु कश्चिद्वैद्यगुणेन चेत् ॥
शारीरस्थाने चतुर्थोऽध्यायः।। असमग्राभिघाताच्च सोऽपि वैकल्यमश्नुते तस्मात् क्षीरविषाग्न्यादीन्यत्नान्मर्मसुव
येत् ।
पञ्चमोऽध्यायः। अर्थ-उक्त हेतु से मर्मस्थान में आहत मनुष्य कदापि नहीं जीता है, और मर्म अथाऽतो विकृतिविज्ञानीयं शारीर रहित स्थान में सौ सौ वार विद्ध होने पर भी
व्याख्यास्यामः नहीं मरता है। मर्म दो तरह के कहे गये हैं अर्थ-अब हम यहां से विकृतिविज्ञाएक प्राणघाती और दूसरे वैकल्यकारक । | नीय नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे । इन में से प्राणघाती मर्मों में कुशा का
। मृत्यका चिन्हारष्ट । अग्रभाग छिदजाने से भी मनुष्य नहीं जी "पुष्पं फलस्य धूमोऽग्नेर्वर्षस्य जलदोदयः। सकता है। यदि प्राणघाती मर्म में विद्ध
यथा भविष्यतोलिंगंरिष्टं मृत्योस्तथाध्रुवम् । हुआ मनुष्य अपने पुण्यप्रभाव और आयु ।
अर्थ-जैसे होनेवाले फल से पहिले के शेष होने तथा वैद्य के गुण से बच भी
पुष्प होता है, होनेवाली अग्नि से पहिले जाता है। तो उसके देह में सदा विक धूआं होता है और होनेवाली वृष्टि से पहिलता रहती है, इसलिये मर्म पर क्षार, ले बादल होता है वेसही होनेवाली मृत्यु विष, अग्निकर्म और आदि शब्द से भ- | से पहिले रिष्ट होता है । अर्थात् पुष्प,धूआं ल्लातक रस, कपिकच्छू और शूकादि का
और बादल को देखकर जैसे फल, अग्नि प्रयोग कदापि न करे । इसमें विशेष साव
और वर्षा का अनुमान होता है, वैसही रिष्ट धानी रखनी चाहिये।
देखकर मृत्यु का निश्चय होता है । .
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