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(२७८)
अष्टांगहृदये।
रुधिर कटु और तक्षिणवीर्य औषधियों द्वारा | माऽनिलाऽग्न्युत्भुवाम्झर जाता है तब वे अज्ञान से यह कहने
| एकगुणवृद्धयन्वयः परे ॥ २॥ लगते हैं कि गर्म को भूत लेगया है । ऐसा
अर्थ-शब्द, स्पर्श, रूप, रस, और कहने का यही कारण है कि उन भूतों ने
गंध ये पांच गुण क्रम से आकाश,वायु, अग्नि कभी शरीरं का हरण नहीं देखा है । अथवा
जल और पृथ्वी के हैं अर्थात् आक श का यों भी कहते हैं कि भूत अव्यवस्थित होते
गुण शब्द, वायुका स्पर्श, अग्नि का रूप, हैं और वे ओज को खा जाते हैं, जो ऐसा
जल का रस और पृथ्वी का गंध है । इन ही है तो वे गर्भ की माता को भी न छो
पंच महाभूतों में आकाश से उत्तरोत्तर एक डेंगे क्योंकि गर्भमाता तो शरीरवाली है
एक गुण की वृद्धि है अर्थात् आकाश में और गर्भ तो ऐसा है भी नहीं ।
एक ही गुण शब्द है । आकाश से परे इतिश्री अष्टांगहृदये भाषाटीकायां
वायु महाभूत में शब्द स्पर्श दो गुण हैं | द्वितीयोऽध्यायः ।
अग्नि में शब्द स्पर्श और रूप तीन गुण हैं जल में शब्द, स्पर्श, रूप और
रस ये चार गुण हैं तथा पृथ्वीमें शब्द,स्पतृतीयोऽध्यायः।
र्श, रूप,रस और गंध ये पांचों गुण हैं ।।
___महाभूतोंसे देहकी उत्पत्ति । अथाऽतोऽगविभाग शरीरं व्याख्यास्यामः। तत्रखात् स्वानि देहेऽस्मिन् श्रोत्रं शब्दो
अर्थ-अव हम यहां से अंगविभाग नामक शारीर अध्याय की व्याख्या करेंगे।
और वातात्स्पर्शत्वगुच्छ्वासा वन्हेर्ट यूपपक्तयः ॥ ___ अंगों के विभाग।
आप्याजिह्वारसक्लेदाघ्राणगंधास्थिपार्थिवम् " शिरोऽतराधिौ बाहू सक्थिनी च
___ अर्थ-इन पंचमहाभूतोंमे से आकाश से समासतः।
सत्वगुणकी अधिकतासे मनुष्यादि देहमें छि. षडंगमंगं प्रत्यंगं तस्याक्षिह्रदयादिकम् । १॥ | द्रोंके समूह, कान, शब्द और शून्यता उत्पन्न ___ अर्थ-शरीर में एक मस्तक, एक म. होतेहैं ( यद्यपि छिद्रादिकों में संपूर्ण महाभूतों ध्यभाग, दाहिने बांये दो हाथ और दो | का व्यापारहै तथापि आकाश की ही विशेषता पांव ये छ: अंग हैं । इन अंगों के आंख । है जैसे घडे के बनाने में मृत्तिका, दंड, चक्र हृदय, कान, नाक, पाणि, पाद आदि प्र- जल और सूत्र सभी लगतेहैं तथापि मृत्तिका त्यंग हैं ( अंगों के छोटे छोटे अवयवों का | ही विशिष्ट कारण है इसलिये घडा मृत्तिका नाम प्रत्यंग हैं )।
का ही बोला जाताहै ) । वायुसे स्पर्श, स्पर्श पंचमहाभूतों के गुण । का अधिष्ठान त्वचा और प्राणा ( उच्छास ) शब्दःस्पर्शश्च रूपंचरसोगंधःक्रमाद्गुणाः | बनते हैं अग्नि सतोगुण और रजोगुण
विविक्तता।
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