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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
म १
इन दिन अर्चित्य कारण से आर्तव कम होजाता है तथा अयुग्म रात्रियों में अर्थात् पांचवीं, सातंवीं और नवीं रात्रियों में स्त्री संगम से कन्या उत्पन्न होती है, क्योंकि इनमें अचिन्त्य हेतु से शुक्र कम होता है । यदि आहारादि के कारण अयुग्मा रात्रियों में वीर्य की अधिकता और युग्मा रात्रियों में घीर्य की न्यूनता हो तो पुरुषस्त्रीकी आकृति बाला दुर्बल वा होनांग होता है और स्त्री पुरुष के आकार वाली दुर्बल और हीनांग होती है ।
पुत्रेष्टि यज्ञ ।
उपाध्यायोऽथ पुत्रीय फुर्वीत विधिवद्विधिम् नमस्कारपरायास्तुशूद्राया मंत्रवर्जितम् ।
।
अर्थ - तदनंतर अथर्ववेद का जानने वाला पुरोहित विधिवत् पुत्रेष्टि यज्ञ करावे यह विधि त्रिवर्ण के लिये कही गई है । शूद्राणी को केवल नमस्कार करना उचित है, मंत्रोच्चारण नहीं करना चाहिये | ater गुप्तसेवन ।
nor एवं संयोगः स्यादपत्यं च कामतः ॥ 'संतोऽप्याहुरपत्यार्थ दंपत्योः संगतं रहः । दुरपत्यं कुलांगारो गोत्रे जातं महत्यपि ३०
अर्थ- ऊपर कही हुई रीति से पुत्रविधीयादि करके स्त्रीकेसाथ संगम करनेसे विफलता नहीं होती है किन्तु यथाभलषित पुत्र वा पुत्रीकी उत्पत्ति होती है । साधुटोगों का यह कहना है कि संतान के लिये स्त्री पुरुष का समागम एकान्तमें होना चाहिये क्योंकि एकान्त में समागम न करनेसे उच्चकुलमें भी
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ऐसे बालक होजाते हैं जो कुलका सत्याना -
श कर देते हैं ।
दंपती के पुत्रचिंतनका प्रकार ।
इच्छेतां यादृशं पुत्रं तद्रूपचरितांश्च ती । चिंतयेतां जनपदास्तदाचारपरिच्छदौ ३१ ॥
आ
अर्थ- स्त्री पुरुषको जैसे पुत्रकी इच्छा हो वैसेही रूप ( वर्ण, संस्थान, प्रमाण, आकृति) और चरित ( श्रद्धा, श्रुत, सत्य, ऋजुता, नृशंस्य, दान, दया, दाक्षिण्यादि स्वभाववा ले ) तथा आचार ( कुल और देशके अनुरूप कर्तव्यकर्म ) और परिच्छद (मनुष्य, गौ, अश्त्र, धन, धान्य, वस्त्र, अलंकार, रत्न, रथ, आयुध, गृह, उद्यापन, वीणा, पणव, शय्यादि ) वाले मनुष्यों का ध्यान करे । पुत्रविधिका पश्चात्कर्म ।
कर्माते च पुमान्सर्पिःक्षीरंशाल्योदनाशितः प्राग्दक्षिणेन पादेन शय्यां मौहूर्तिकाशया ॥ आरोहेत् स्त्री तु घामेन तस्य दक्षिणपार्श्वतः तैलमापोत्तराहारा तंत्रमंत्रं प्रयोजयेत् ३३ ॥
अर्थ- पुत्रविधीय यज्ञ करने के पीछे पुरुष घृत और दूध मिलाकर शाली चांवलका भोजन करके ज्योतिषियों के द्वारा शुभ मुहूर्त योग करणादि का स्थिर करके प्रथम दाहिने पांवसे शय्या पर चढे । इसी तरह पत्नी भी तेल और उरद है मुख्य जिनमें ऐसा भोज - न करके वांधे पांवको प्रथम शय्यापर रक्स्वे और पुरुषकी दक्षिण और शयन करे | फि र नीचे लिखे हुए मंत्र का उच्चारण करे । मंत्रपाठ ।
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि घातात्वाम् ।
दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा
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भवति ।