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अष्टांगहृदये। कंडविवाह कुर्वतिगर्भिण्याः किक्किसानि च।। . अष्टम मास में तेज संचार । - अर्थ-सातवें महीने में जब गर्भ पूर्णा- | ओजोऽष्टमे संचरति माता पुत्रीमुहुःफमात्। वयव होजाता है तब उसके द्वारा वातादि तेन तौम्लानमुदितौ तत्र जातोनजीवति । संपूर्ण दोष उत्पीडित होकर हृदयका आश्रय | शिशुरोजोऽनवस्थानानारी संशयिता भवेत् लेते हैं और गर्भणी के खुजली, विदाह
____अर्थ-आठवें माहेने में माता और पुत्र और किक्किस उत्पन्न होते हैं । गर्भिणी के
दोनों को सब धातुओं का तेज बार बार ऊरु स्तन और उदर में रेखा पडजाती हैं
क्रम से संचरित करता है, इससे माता उन्हें किक्किस कहते हैं।
| और पुत्र कभी म्लान और कभी हर्षित - उक्त कालमें उपचार । होते रहते है अर्थात जब ओज माता में नवनीतंहितं तत्रलोलांबुमधुरौषधैः । संचरण करता है तब माता हर्षित और सिद्धमल्पपटुस्नेह लघु स्वादु च भोजनम् ।
गर्भस्थ बालक म्लान रहता है, इसी तरह चंदनोशीरकल्केन लिंपदूरुस्तनोदरम् । श्रेष्टया चैणहरिणशशशोणितयुक्तया ॥
जब ओज गर्भस्थ बालक में संचरण करता अश्वघ्नपत्रसिद्धन सैलेनाभ्यज्य मईयेत् । .
है तब वालक हर्षित और माता म्लान पटोलनिवमंजिष्ठासुरसैःसेचयेत्पुनः॥ रहती है । ऐसे समय में जब कि ओन दा:मधुकतोयेन मुजां व परिशीलयेत् ।
बालक में न हो और वह जन्म लेले तो वह . अर्थ-गर्भिणी को खुजली आदि पूर्वोक्त
जीता नहीं है तथा ओजः पदार्थ की अनरोगों के शमन के लिये बेर के रस में
वस्थिति के कारण माता के मरने जीनेका दाक्षादि मधुर औषधों को पीसकर उस में भी संशय रहता है। पकाया हुआ नवनीत ( माखन ) देवै । तथा नमक और घृत मिलाकर. मधुर और
अष्टम मास का उपचार । . हलका भोजन खाने को दे । चन्दन और क्षीरपेया व पेयात्रसवृतान्वासनं घृतं । खस को जल में पीसकर ऊरु, स्तन और | मधुरैः साधितं शुद्धयै पुराणशकृतस्तथा ॥ उदर पर लेप करे । अथवा हरिण और | शुष्कमूलककोलाम्लकषायेण प्रशस्यते । खरगोश के रुधिर में त्रिकला को पीसकर शतावाकलिकतो वस्तिःसतैलघृतसैंधवः ॥ भी लेप करे ।, अथवा कनेर के पत्तों से अर्थ-आठवें महीने में दूध में पकाई हुई पकाया हुआ तेल लगाकर फिर परवल, पेया घृत डालकर पीना चाहिये । द्राक्षादि नीमके पत्ते, मजीठ, और तुलसी के पत्तों | मधुर द्रव्यों से सिद्ध कियेहुए घृत से अ. के कल्क स मर्दन करे । दारुहलदी और नुवासन वस्ति देवै । पुराने मल को निकामुलहटी के काथ से देह पर परिषेक करे ।। लने के लिये सूखी मूली बेर और इमली के तथा स्नान उवटना आदि करते रहना | काथ में सोंफका कल्क मिलाकर तेल, घृत उचित है।
| और सेंधानमक डाल कर निरूहणवस्ति दे
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