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अष्टांगहृदये ।
घंटीयंत्र |
तद्वद् घटी हिता गुल्मविलयोनमने च सा अर्थ- यह घटी यंत्र गुल्म के घटाने बढाने में काम आता है । अलावु यंत्र के सदृश ही इस में भी जलती हुई बत्ती रक्खी जातीं है ।
शलाका यंत्र |
शलाकाख्यानि यंत्राणि नानाकर्माकृतीनि च यथायोगप्रमाणानि तेषामेषणकर्मणी । उभे गंडूपदमुखेस्नोतोभ्यः शल्यहारिणी ॥ २९ ॥ मसूरदलवक्त्रे द्वे स्यातामष्टनवांगुले ।
अर्थ --शलाका यंत्र अनेक प्रकार के होते हैं, इनकी आकृति भी कार्य के अनुसार भिन्न २ प्रकार की होती है । इन में से गिडोये के तुल्य मुखवाली दो प्रकार की
लाई नाडी व्रण के अन्वेषण में काम आती है । और दो प्रकार की शलाका आठ और नौ अंगुल लंबी मसूर के दल के समान मुखवाली होती है ये स्रोतो मार्ग में प्रविष्ट शल्यों के निकालने में काम आती हैं ।
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संकुयंत्र |
शङ्कवः षट्
तेषां षोडशद्वादशांगुलौ ॥ ३० ॥ व्यूहनेऽहिफणावत्रौ द्वौ दशद्वादशांगुली। चालने शरपुंखास्य
आहार्ये बडिशाकृती ॥ ३१ ॥ अर्थ--शंकुयंत्र छः प्रकार के होते है । में से दो सर्प के फण के आकार वाले
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सोलह वा बारह अंगुल लंबे होते है, ये व्यूहन अर्थात् शल्य निकालने के काम में आते हैं । दो शरपुंख (वाज ) के मुखवाले दस और बारह अंगुल लंबे चालन. कार्य के निमित्त व्यवहार में आते हैं शेष दो बडिश की आकृतिवाले आहरणार्थ (शल्य के निकालने में ) काम आते हैं । गर्भशंकु ।
नतोऽग्रे शंकुना तुल्यो गर्भशकुरिति स्मृतः । अष्टांगुलायतस्तेन मूढगर्भ हरेत् स्त्रियाः ३२ अर्थ - आठ अंगुल लंबे अंकुश के समान | टेढे मुखबाला स्त्रियों के मूढ गर्भ को निकालेने में काम आता है । इसे गर्भशंकु यंत्र कहते हैं ॥
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सर्पफण यंत्र । अश्मर्याहरणे सर्पफणावद्वक्रमप्रतः । अर्थ अप्रभाग में सर्प के फण के समान यंत्र से पथरी निकाली जाती है, इसे सर्प फणास्य यंत्र कहते हैं ॥
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शरपुंयंत्र |
शरपुंखमुखं दन्तपातनं चतुरंगुलम् ॥ ३३ ॥ अर्थ - यह वाजपक्षी के सदृश मुखवा -